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दुर्गा मां का आठवें स्वरूप हैं महागौरी, जानें इसकी की पौराणिक कथा
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। ये दुर्गा मां का आठवां स्वरूप हैं। जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि मां का वर्ण गौर है। मां की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी जाती है। मां के सभी वस्त्र और आभूषण सफेद हैं। मान्यता है कि अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी मां की आयु 8 वर्ष की मानी गई है। यही कारण है कि इन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। मां की 4 भुजाएं हैं। मां का वाहन वृषभ है। अत: मां को वृषारूढ़ा भी कहा गया है।
मां महागौरी की 4 भुजाएं हैं। मां के ऊपर वाला दाया हाथ अभय मुद्र में है। मां के नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे वाला बायां हाथ वर मुद्रा में है। मां बेहद ही शांत मुद्रा में हैं। मां भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थीं जिसके चलते इन्होंने बेहद कठोर तपस्या की थी। यही कारण है कि मां का शरीर इतनी कठोर तपस्या से काला पड़ गया था। फिर मां ने अपने काले रंग को गौर वर्ण का करने के लिए तपस्या की। मां की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनके वर्ण को कांतिमय बना दिया। इससे मां का रूप फिर से गौर हो गया। यही कारण है कि मां के इस रूप को महागौरी कहा जाता है।
मां महागौरी अमोघ फलदायिनी हैं। मां की पूजा करने से भक्तों कें कल्मष धुल जाते हैं। साथ ही सभी पाप भी नष्ट हो जाते हैं। सच्चे मन और पूरी श्रद्धा से अगर महागौरी की पूजा-अर्चना, उपासना-आराधना की जाए तो यह बेहद कल्याणकारी होता है। मां की कृपा अपने भक्तों पर हमेशा ही बनी रहती है और इनकी कृपा से ही भक्तों को अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।