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Mahabharata Katha : महाभारत के इन शापों का प्रभाव, आज भी धरती पर स्थित

Deepa Sahu
4 Jan 2021 2:59 PM GMT
Mahabharata Katha : महाभारत के इन शापों का प्रभाव, आज भी धरती पर स्थित
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Mahabharata Katha : महाभारत के इन शापों का प्रभाव, आज भी धरती पर स्थित

महाभारत युद्ध के इन चर्चित शाप के बारे में जानकर रह जाएंगे हैरान

जनता से रिश्ता वेबडेस्क : महाभारत युद्ध के इन चर्चित शाप के बारे में जानकर रह जाएंगे हैरान- महाकाव्य महाभारत को भारत का ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथों में सम्मिलित जाता है। महाभारत युद्ध हुए वैसे तो हजारों साल हो चुके हैं लेकिन आज भी कई घटनाएं ऐसे हैं, जिनको लेकर लोगों में आज भी जिज्ञासा बनी रहती है। महाभारत से जुड़े शाप और वचनों में भी कई रहस्य छिपे हुए हैं। वैसे तो इस काल में कई शाप और वरदान सुनने को मिल जाएंगे लेकिन कुछ शाप ऐसे हैं, जिनका प्रभाव आज तक दिख रहा है। आइए जानते हैं महाभारत के इन शाप के बारे में…

युधिष्ठर ने दिया माता कुंति को शाप
महाभारत युद्ध के बाद जब माता कुंती ने पांडवों के पास जाकर बताया कि कर्ण को भाई बताया। इससे पांडव काफी दुखी हो गए थे क्योंकि उन्होंने अपने ही हाथों अपने भाई का वध कर दिया। कर्ण के अंतिम संस्कार के बाद जब पूरा परिवार शोकाकुल अवस्था में था तब युधिष्ठर माता कुंति के पास गए और उन्होंने शाप दिया कि आज से कोई भी स्त्री किसी भी प्रकार का गोपनीय रहस्य नहीं छुपा पाएगी।
उर्वशी ने अर्जुन को दिया शाप

महाभारत काल में एकबार अर्जुन दिव्यास्त्र की शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्वर्ग लोक गए हुए थे। वहां उर्वशी नाम की एक अप्सरा अर्जुन पर आकर्षित हो गई। जब उर्वशी ने यह बात अर्जुन को बताई तब अर्जुन ने उर्वशी को अपनी मां के समान बताया। इस बात पर उर्वशी क्रोधित हो गईं और अर्जुन को शाप दे दिया। उर्वशी ने कहा कि जिस तरह तुम नपुंसक की तरह बात कर रहे हो, मैं तुमको शाप देती हूं कि तुम एक वर्ष के लिए पुंसत्वहीन रहोगे और स्त्रियों की तरह नर्तक बनकर रहना पड़े। यह बात अर्जुन ने देवराज इंद्र को बताई। इंद्र ने सांत्वना देते हुआ कहा कि वनवास के समय यह शाप तुम्हारे काम आएगा और कौरवों से बचे रहोगे।
श्रीकृष्ण ने अश्वस्थामा को दिया शाप
महाभारत युद्ध के दौरान जब अश्वस्थामा ने धोखे से पांडव पुत्रों को मार दिया था तब पाडव समेत श्रीकृष्ण अश्वस्थामा का पीछा करते-करते महर्षि वेदव्यास के आश्रम में जा पहुंचे। तब प्राणों को संकट में देख अश्वस्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया फिर अर्जुन ने भी अपने बचाव में ब्रह्मास्त्र को छोड़ दिया। वेदव्यासजी ने अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अस्त्र-शस्त्र को वापस लेने का आदेश दिया। अर्जुन ने आज्ञा मानकर ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वस्थामा को इसकी जानकारी नहीं थी, तब उसने दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दिया। जिससे क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने तीन हजार साल तक पृथ्वी पर भटकने का शाप दिया। बताया जाता है कि आज अश्वस्थामा को देखा गया है।
मांडव्य ऋषि ने यमराज को दिया शाप
महाभारत प्रसंग में मांडव्य ऋषि का वर्णन मिलता है। एक बार राजा ने भूलवश न्याय देने में गलती कर दी और मांडव्य ऋषि को सूली पर चढ़ाने का आदेश दिया। राजा के आदेश से ऋषि को सूली पर चढ़ा दिया लेकिन बहुत समय बाद भी वह लटके रहे लेकिन उनके प्राण नहीं गए। तब राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ और गलती स्वीकार कर मांडव्य ऋषि नीचे उतरवाया। इसके बाद ऋषि यमराज से मिलने गए और अपनी सजा का कारण पूछा, तब यमराज ने कहा कि आपने 12 साल की उम्र में एक छोटे से कीड़े की पूंछ में सूई चूभाई थी, जिसके कारण यह सजा मिली। तब ऋषि ने कहा इस उम्र में किसी को धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता लेकिन फिर भी तुमने मुझे दंड दिया। इसलिए मैं तुमको शाप देता हूं कि तुम धरती पर दासी पुत्र के रूप में जन्म लोगे। इस शाप के कारण यमराज को महात्मा विदुर के रूप में जन्म लेना पड़ा।
शमीक ऋषि के पुत्र ने राजा परीक्षित को दिया शाप
पांडवों ने स्वर्ग जाने से पहले अपना सारा राज-पाठ अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को सौंप दिया था। राजा परिक्षित के राज से सभी प्रजा बहुत खुश थी। एक दिन राजा परिक्षित वन में खेलने गए थे, तब उनको तपस्या में लीन शमीक ऋषि दिखाई दिए, तपस्या में होने के कारण उन्होंने मौन व्रत धारण कर रखा था। राजा ऋषि से मिलने आए लेकिन उन्होंने राजा के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया। इस घटना से क्रोधित राजा ने ऋषि पर मरा हुआ सांप फेंक दिया। जब इस बात की जानकारी ऋषि की पुत्र को मिलती तब उन्होंने राजा को शाप दिया कि सात दिन बाद तक्षक नाग से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी, इससे राजा काफी भयभीत हो गया। राजा की सात दिन नाग के काटने से मृत्यु हो गई और उसके ठीक बाद कलयुग की स्थापना हुई।
गांधारी ने श्रीकृष्ण को दिया शाप
महाभारत युद्ध में कौरव वंश के अंत हो गया था। इस युद्ध में दुर्योंधन समेत उसके 100 भाइयों की मौत हो गई थी। कौरवों की माता गांधारी अपने पुत्रों की मृत्यु की वजह से शोक में व्याकुल थीं। भगवान कृष्ण के आते ही उनका क्रोध और बढ़ गया और क्रोधित गांधारी ने श्रीकृष्ण को शाप देते हुए कहा कि जिस तरह मेरे पुत्रों का अंत हुआ है, उसी तरह तुम्हारे वंश के लोग एक-दूसरे को मारने के कारण नाश हो जाएगा। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि आपको इससे शांति मिल सकती है तो ऐसा जरूर होगा। कुछ दिन बाद जब कृष्ण द्वारिका में रहते थे तब दुर्वासा ऋषि अपने अपमान के चलते एक बच्चे को शाप दे दिया कि तुम्हारे वंश का नाश हो जाएगा। इनके शाप के बाद सभी एक-दूसरे को मारने लगे और फिर कुछ ही लोग बचे थे और कुछ दिन बाद कृष्ण की द्वारिक सागर में डूब गई।


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