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Mahabharat: जानिए पाकिस्तान में स्थित यह मंदिर, जहां युधिष्ठिर और यक्ष का हुआ था संवाद, जानिए पूरी कहानी
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। महाभारत का युद्ध इतिहास के सबसे विनाशकारी युद्धों में से एक माना जाता है. महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला. महाभारत का युद्ध धर्म की रक्षा के लिए लड़ा गया, जिसमें पांडवों को विजय प्राप्त हुई. पांडवों की सेना का नेतृत्व धर्म राज युधिष्ठिर कर रहे थे.
महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों को कई तरह के कष्ट उठाने पड़े. पांडवों को 13 वर्ष तक अज्ञातवास में रहना पड़ा. अज्ञातवास के दौरान पांडवों को अपनी पहचान और वेष बदलकर रहना पड़ा इस दौरान अर्जुन को बृहन्नला यानि एक किन्नर बनकर रहना पड़ा.
पांडव जब अज्ञातवास में रह रहे थे तब धर्मराज युधिष्ठिर की मुलाकात यक्षराज से हुई थी. जिसका वर्णन महाभारत की कथा में बहुत ही प्रभावशाली ढ़ग से किया गया है. कथा के अनुसार एक तलाब का पानी पीने से सभी पांडवों की मृत्यु हो गई. अंत में जब युधिष्ठिर इस तलाव के समीप पहुंचे तो उनका सामना एक यक्षराज से होता है.
पानी पीने से पहले यक्ष युधिष्ठिर से कुछ प्रश्न करता है. यक्ष युधिष्ठिर से पूछता है कि पृथ्वी से भारी क्या है? युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि पृथ्वी से भारी यानी बढ़ कर है मां.
यक्ष दूसरे प्रश्न में पूछता है कि आकाश से ऊंचा क्या है? धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा- पिता का कद आकाश से भी ऊंचा होता है.
यक्ष ने अगला सवाल किया कि वायु से तेज क्या चलता है? युधिष्ठिर ने कहा मन की गति वायु से भी तेज होती है.
यक्ष ने पूछा कि तिनकों से अधिक संख्या किसकी है. युधिष्ठिर ने कहा कि चिंताओं की संख्या तिनकों से अधिक होती है.
यक्ष ने पूछा कि सो जाने पर भी आखें कौन नहीं मूंदता? इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि मछली सोने पर भी आखें नहीं मूंदती.
इस प्रकार यक्ष के सभी प्रश्नों का युधिष्ठिर सही जवाब देते हैं. इस बात से खुश होकर यक्ष ने युधिष्ठिर से सभी भाइयों को जिंदा कर देता है और पीन लेने की अनुमति प्रदान करता है.
पाकिस्तान में मौजूद ये स्थान
युधिष्ठिर और यक्ष का जिस स्थान पर संवाद हुआ था वह स्थान आज भी मौजूद है. ये स्थान पाकिस्तान में स्थित है. जहां आज भी हर साल हजारों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. ये स्थान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के जिला चकवाल में स्थित है. यहीं पर प्राचीन और प्रसिद्ध कटासराज का मंदिर स्थित है. इस मंदिर के परिसर में एक कुंड बना हुआ है. माना जाता है कि ये वहीं कुंड है जहां से पांडवों ने पीनी लिया था और इसी स्थान पर युधिष्ठिर का यक्ष से संवाद हुआ था. इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि ये कुंड भगवान शिव के आंसू गिरने से बना है. पौराणिक काल में भगवान शिव जब सती की अग्नि-समाधि से काफी दुखी हुए थे तो उनके आंसू दो जगह गिरे थे. एक आंसू से कटासराज सरोवर का निर्माण हुआ तो दूसरा आंसू राजस्थान के पुष्कर में गिरा था.