धर्म-अध्यात्म

Maa Santoshi Vrat katha: शुक्रवार के दिन करें मां संतोषी की व्रत कथा का पाठ

Bharti Sahu 2
9 Aug 2024 3:46 AM GMT
Maa Santoshi Vrat katha: शुक्रवार के दिन करें मां संतोषी की व्रत कथा का पाठ
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Maa Santoshi Vrat katha: मां संतोषी की व्रत कथा शुक्रवार के दिन पढ़ने का विशेष महत्व है. यह व्रत विशेष रूप से उन महिलाओं द्वारा किया जाता है जो संतान सुख और परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं. माना जाता है कि जो भी संतोषी माता की पूजा करता है, उसे जीवन में हर प्रकार का सुख और समृद्धि प्राप्त होती है.
शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी और मां संतोषी पूजा के लिए खास माना जाता है. इस दिन मां संतोषी की पूजन का बड़ा महत्व है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां संतोषी की पूजा करने से जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है. मां संतोषी की पूजा मुख्य रूप से शुक्रवार के दिन की जाती है. इस दिन व्रत रखकर माता की पूजा और व्रत कथा पढ़ने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
मां संतोषी की व्रत कथा
धार्मिक कथाओं के अनुसार, बहुत समय पहले की बात है. एक बुढ़िया के सात पुत्र थे. उनमें से 6 पुत्र कमाते थे और एक पुत्र बेरोजगार था. वो अपने 6 बेटों को बड़े प्रेम से खाना खिलाती और उनके खाने के बाद उनकी थाली की बची हुई जूठन सातवें बेटे को खिला दिया करती. सातवें बेटे की पत्नी यह सब देखकर बड़ी दुखी रहती थी. एक दिन बहू ने जूठा खिलाने की बात अपने पति से कही पति ने सिरदर्द का बहाना कर, रसोई में लेटकर स्वयं सच्चाई देख ली और परदेस जाने से लिए घर से निकल गया.
चलते-चलते दूर देश में पहुंचा. वहां एक साहूकार की दुकान थी. उसने साहूकार के यहां नौकरी करनी शुरू कर दी. वह वहां दिन-रात लगन से काम करने लगा. कुछ दिन में ही वह दुकान का लेन-देन, हिसाब-किताब, ग्राहकों को माल बेचना, सारा काम सीख गया. तब साहूकार ने इन सभी कामों को जिम्मेदारी उसे दे दी.
इधर उसकी पत्नी पर क्या बीती वह सुनें. बेटे के जाने के बाद सास-ससुर उसे दुख देने लगे. घर गृहस्थी का काम करवा कर लकड़ी लेने जंगल में भेजते और उसके लिए रोटियों के आटे से जो भूसी निकलती, उसकी रोटी बनाकर रख देते और फूटे नारियल की नरेली में उसे पानी देते. इस तरह दिन बीतते रहे. एक दिन वह जब जंगल में लकड़ी लेने जा रही थी तब उसे रास्ते में बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करते हुए दिखाई दीं.
यह वहां खड़ी होकर पूछने लगी, बहनो, यह तुम क्या करती हो और इसके करने से क्या फल मिलता है? इस व्रत के करने की क्या विधि है? तब स्त्रियों ने उसको संतोषी माता के व्रत की महिमा सुनाई तब उसने भी इस व्रत को करने का निश्चय किया. उसने रास्ते में लकड़ी को बेच दिया और उन पैसों में गुड़ चना ले माता के व्रत की तैयारी कर व्रत रखा. रास्ते में संतोषी माता के मंदिर में विनती करने लगी, मां! मैं मुर्ख हूं. व्रत के नियम नहीं जानती. मेरा दुख दूर कर मैं तेरी शरण में हूं.
माता को दया आई. दूसरे शुक्रवार को ही उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ पैसा आ पहुंचा. तब उसने मां से प्रार्थना की मुझे तो अपने सुहाग से काम है. मैं तो अपने स्वामी के दर्शन और सेवा मांगती हूं. तब माता ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया कि जल्दी ही तेरा पति घर वापस आएगा. फिर संतोषी माता ने उस बुढ़िया के बेटे को स्वप्न में उसकी पत्नी की याद दिलाई और उसे घर वापस लौट जाने को बोला.
मां की कृपा से अगले दिन सब काम से निपटकर सातवां बेटा अपने घर को रवाना हुआ. उसकी पत्नी लकड़ी लेने जंगल गई हुई थी तब रास्ते मे संतोषी मां के मंदिर मे आई तब उसको मां ने उसके पति के आने की खबर दी और उसको कहा की लकड़ियों की गठरी लेकर अपने घर जाना और तीन आवाजें जोर से लगाना लो सासूजी, लकड़ियों का, गट्ठा लो, भूसी को रोटी दो, नारियल के खोपरे में पानी दो! आज कौन मेहमान आया है?
उसने घर पहुंचकर ऐसा ही किया. पत्नी की आवाज सुनकर उसका पति बाहर आया. तब उसकी मां बोली, बेटा जब से तू गया है, तब से कामकाज कुछ करती नहीं, चार समय आकर खा जाती है. वह बोला मां, मैंने इसे भी देखा है और तुम्हें भी. इसके बाद वह पत्नी के साथ दूसरे घर में रहने लगा. शुक्रवार आने पर पत्नी ने उद्यापन की इच्छा जताई और पति की आज्ञा पाकर अपने जेठ के लड़कों को निमंत्रण दे आई.
जेठानी को पता था कि शुक्रवार के व्रत में खट्टा खाने की मनाही है. उसने अपने बच्चों को सिखाकर भेजा कि खटाई जरूर मांगना. बच्चों ने भरपेट खीर खाई और फिर खटाई की रट लगाकर बैठ गए. ना देने पर चाची से रुपए मांगे और इमली खरीद कर खा ली. इससे संतोषी माता नाराज हो गई और बहू के पति को राजा के सैनिक पकड़कर ले गए.
बहू ने मंदिर जाकर माफी मांगी और वापस उद्यापन का संकल्प लिया. इसके साथ ही उसका पति राजा के यहां से छूटकर घर आ गया. अगले शुक्रवार को बहू ने ब्राह्मण के बच्चों को भोजन करने बुलाया और दक्षिणा में पैसे न देकर एक- एक फल दिया. इससे संतोषी माता प्रसन्न हो गई. माता की कृपा से कुछ समय बाद उसको चंद्रमा के समान एक सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ. बहू का सुख देखकर उसके ससुराल वाले भी संतोषी माता के भक्त बन गए. हे संतोषी मां आपने बहू को जैसा फल दिया, वैसा सबको देना. जो यह कथा सुने या पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो.
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