धर्म-अध्यात्म

भगवान शिव के ससुर और माता सती के पिता दक्ष प्रजापति भगवान शिव को कभी पसंद नहीं करते थे, जानिए

Neha Dani
10 July 2023 6:14 PM GMT
भगवान शिव के ससुर और माता सती के पिता दक्ष प्रजापति भगवान शिव को कभी पसंद नहीं करते थे, जानिए
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धर्म अध्यात्म: शास्त्रों में भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। जिसमें राजा दक्ष प्रजापति उनकी पुत्री सती और भगवान शिव के विवाह से जुड़ी हुई हैं। भगवान शिव के ससुर और माता सती के पिता दक्ष प्रजापति भगवान शिव को कभी पसंद नहीं करते थे। राजा दक्ष प्रजापति एक प्रतापी राजा थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्राा जी ने मानस पुत्र के रूप में राजा दक्ष को जन्म दिया था। इस समय सावन का पवित्र महीना चल रहा है। सावन का महीना भगवान शिव और माता पार्वती बहुत ही प्रिय होता है। ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने ही मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था तब शिवजी ने प्रसन्न होकर मां पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। शास्त्रों में भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। जिसमें राजा दक्ष प्रजापति उनकी पुत्री सती और भगवान शिव के विवाह से जुड़ी हुई हैं। भगवान शिव के ससुर और माता सति के पिता दक्ष प्रजापति भगवान शिव को कभी पसंद नहीं करते थे। दरअसल राजा दक्ष प्रजापति के द्वारा शिवजी को न पसंद किए जाने के पीछ कई तरह की पौराणिक कथाएं हैं। राजा दक्ष प्रजापति एक प्रतापी राजा थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्राा जी ने मानस पुत्र के रूप में राजा दक्ष को जन्म दिया था। दक्ष प्रजापति का विवाह आस्कनी से हुआ था। ये भगवान विष्णु के परम भक्त थे। राजा दक्ष की 16 पुत्रियां थीं। जिसमें सबसे छोटी पुत्री का नाम सती था। सती भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करती रहती थीं। यह बात राजा दक्ष को बिलकुल भी पसंद नहीं था।
राजा दक्ष अपने राज्य में भगवान शिव का नाम जो भी लेता उससे वे क्रोधित हो उठते थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष और भगवान शिव की बीच कटुता के तीन कारण बताए जाते हैं। एक कथा के अनुसार प्रारंभ में ब्रह्रााजी के पांच सिर थे। ब्रह्रााजी के तीन सिर हमेशा से वेदपाठ किया करते रहते लेकिन उनके 2 सिर वेद को भला-बुरा कहा करते थे। इस आदत से भगवान शिव को हमेशा गुस्सा आता रहता है था फिर एक दिन इससे नाराज होकर उन्होंने ब्रह्रााजी के पांचवें सिर को काट दिया। दक्ष प्रजापित अपने पिता ब्रह्राा के सिर को काटने की वजह से शिवजी पर क्रोधित रहते थे। दूसरे मत के अनुसार, पार्वती जी ने सती के रूप में राजा दक्ष के यहां जन्म लिया था। सती के रूप में माता पार्वती भगवान शिव से ही विवाह करना चाहती थी, लेकिन सती के पिता राजा दक्ष को लगता था कि भगवान शिव सती के योग्य नहीं हैं। इसी कारण से जब सती के विवाह के उन्होंने अपने राज्य में स्वयंवर का आयोजन किया था तो उसमें शिव जी निमंत्रण नहीं दिया था। हालांकि सती ने मन ही मन में भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करती रहतीं। सती ने भगवान शिव का नाम लेते हुए स्वयंवर में पृथ्वी पर वरमाला डाल दी। तब स्वयं शिव वहां पर प्रगट होकर सती के द्वारा डाली गई वरमाला को पहन लिया था। इसके बाद शिव जी ने सती को अपनी पत्नी स्वीकार कर वहां से चल गए। यह बात राजा दक्ष को पसंद नहीं आई कि उनकी इच्छा के विपरीत सती का विवाह शिव के साथ हुआ।
प्रचलित कथाओं के अनुसार एक बार यज्ञ का आयोजन किया गया था जहां पर सभी देवी-देवता पहुंचे थे। इस यज्ञ में जब राजा प्रजापति पहुंचे तो सभी देवी-देवताओं और अन्य राजाओं ने खड़े होकर राजा दक्ष का स्वागत किया। लेकिन शिवजी ब्रह्रााजी के साथ बैठे रहें। तब इसको देखते हुए राजा दक्ष ने इसे अपना अपमान समझा और शिव के प्रति कई तरह के अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। यही कारण था कि शिवजी और उनके ससुर राजा दक्ष की आपस में नहीं बनती। एक बार राजा दक्ष ने अपने राजमहल में एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने सभी को निमंत्रण दिया था,लेकिन शिवजी और मां सती को इस यज्ञ में नहीं बुलाया। फिर यज्ञ की बात को जानकर देवी सती बिना बुलाए अपने पिता राजा दक्ष के घर चली गईं। जहां पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव और सती का अपमान भरी सभा में सबके सामने किया। तब सती अपने पति भोलेनाथ के अपमान को सह नहीं सकीं और यज्ञस्थल पर जल रही अग्नि में कूदकर स्वयं को भस्म कर लिया था। जब शिवजी को सती के भस्म होने का समाचार मिला तो वे क्रोधित होकर यज्ञ स्थल पर पहुंचकर सती के अवशेषों को लेकर तांडव करने लगे। भगवान शिव ने तब वीरभद्र को उत्पन्न करके यज्ञ स्थल में मौजूद सभी को दंड देते हुए राजा दक्ष का सिर काट डाला। बाद में ब्रह्राा के द्वारा प्रार्थना करने पर शिव जी ने दक्ष प्रजापति के सिर के बदले बकरे का सिर प्रदान करके यज्ञ को पूरा किया। ऐसा माना जाता है कि वीरभद्र शिवजी के तीसरे नेत्र से प्रगट हुए थे।विशेष संयोग में जल्द शुरू होगा सावन का महीना, इन राशि वालों की पूरी होंगी मनोकामनाएं.

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