धर्म-अध्यात्म

रुद्राष्टकम पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न होंगे और हर मनोकामना होगी पूर्ण

Tara Tandi
27 Jun 2022 7:04 AM GMT
रुद्राष्टकम पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न होंगे और हर मनोकामना होगी पूर्ण
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सोमवार का दिन भगवान ​भोलेनाथ की आराधना के लिए उत्तम माना जाता है,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सोमवार का दिन भगवान ​भोलेनाथ की आराधना के लिए उत्तम माना जाता है, लेकिन अन्य दिन भी पूजा करने की कोई मनाही नहीं है. इस बार सोमवार 27 जून को मासिक शिवरा​त्रि (Shivratri) का योग बना हुआ है. इस अवसर पर आप भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करना चाहते हैं और अपने शत्रुओं एवं विरोधियों को पराजित करना चाहते हैं, तो पूजा के समय रुद्राष्टकम् पाठ करें. शिव रुद्राष्टकम् पाठ करने से भगवान शिव (Lord Shiva) अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं.

तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव का कहना है कि रुद्राष्टक पाठ बहुत ही प्रभावी माना जाता है. इसको करने से त्वरित फल की प्राप्ति होती है. तुलसीदास रचित रामचरितमानस में रुद्राष्टक पाठ का वर्णन मिलता है. कहा जाता है कि प्रभु श्रीराम जब लंका के राजा रावण पर चढ़ाई करने वाले थे, तो उससे पहले उन्होंने समुद्र तट पर भगवान शिव शंकर की पूजा अर्चना की और रुद्राष्टक पाठ किया. रुद्राष्टक पाठ से भगवान भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान श्रीराम को अपने शत्रु रावण पर विजय का आशीर्वाद प्रदान किया.
इस वजह से रुद्राष्टक पाठ का महत्व और भी बढ़ जाता है. यदि आपको अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करनी है या विरोधियों के वर्चस्व को तोड़ना है, तो आप भी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रुद्राष्टक पाठ का पाठ कर सकते हैं.
रुद्राष्टक
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥1॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं।गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं। गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्॥2॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं। मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्॥
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा।लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्॥
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं॥
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥5॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं। भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्॥
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये॥
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥9॥
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