धर्म-अध्यात्म

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा देती है 100 यज्ञों का पुण्य

HARRY
15 Jun 2023 6:51 PM GMT
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा देती है 100 यज्ञों का पुण्य
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Shri Jagannath Rath यात्रा | भगवान जगन्नाथ का नाम लेते ही दो बातों का स्मरण होता है- रथयात्रा और बगैर हाथ वाली भगवान जगन्नाथ की काठ से बनी वह मूर्ति, जिसमें वह अपनी बहन (सुभद्रा) और भाई (बलराम) साथ नजर आते हैं। सनातन धर्म का पर्व रथयात्रा हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है, जिस दिन जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। वैसे तो यह मूल, मुख्य और भव्य रुप से ओडिशा के पुरी में मनाया जाता है, लेकिन देश की सांस्कृतिक राजधानी कोलकाता और इसके आसपास के जिलों में निकाली जाने वाली रथयात्राएं भी काफी चर्चित रहती हैं।

देश में कोलकाता ही एक मात्र शहर है जहां न केवल 303 वर्ष पुराना जगन्नाथ मंदिर है, बल्कि जगन्नाथ घाट व मौसी घाट भी है। भगवान जगन्नाथ और मौसी के नाते का महत्व इसी स्पष्ट है कि रथयात्रा के ठीक पहले स्नान यात्रा के बाद भगवान मंदिर न जाकर 14 दिनों के लिए मौसी के घर जाते हैं।

ओडिशा या उत्कल राज्य का पुरी क्षेत्र शंख क्षेत्र या श्री क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। इसे पुरुषोत्तमपुरी भी कहते हैं। पुरी भगवान श्रीजगन्नाथ की मुख्य लीला भूमि मानी जाती है। मान्यता यह भी है कि राधा-कृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक हैं जगन्नाथ। श्री कृष्ण और बलराम जी की बहन सुभद्रा जी ने एक बार अपने भाइयों के साथ नगर घूमने का हठ किया। इस पर कृष्ण ने कहा था कि समय आने पर तुम्हारी यह इच्छा अवश्य पूरी होगी। देश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले कोलकाता शहर में भी भगवान जगन्नाथ के कुल 9 मंदिर हैं, जिनमें पुरी के बाद भगवान जगन्नाथ का सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर (303 वर्ष पुराना) मध्य कोलकाता के नवाब लेन में है। इस मंदिर का गुंबद करीब-करीब पुरी के मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है।

प्राचीन होने के साथ इस जगन्नाथ मंदिर की एक अन्य विशेषता है-जगन्नाथ घाट और मौसी घाट। गोमुख से गंगासागर तक गंगा नदी के विभिन्न राज्यों में सैंकड़ों घाट हैं, लेकिन भगवान जगन्नाथ के नाम पर गंगा घाट केवल कोलकाता में ही है। नवाब लेन वाले इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। इस मंदिर के नाम पर ही कलकत्ता पोर्ट ट्रस्ट (वर्तमान में कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट) ने 1758 में गंगा के एक तट का नाम जगन्नाथ घाट रखा और इसके कुछ वर्ष बाद मंदिर कमेटी के अनुरोध पर मौसी घाट भी बनाया क्योंकि भगवान जगन्नाथ स्नान के बाद और रथयात्रा से ठीक पहले हर साल 14 दिनों के लिए मौसी के घर जाते हैं।

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