धर्म-अध्यात्म

भगवान जगन्नाथ का रथयात्रा उत्सव आज, जानिए क्यों अधूरी है मूर्ति

Tara Tandi
1 July 2022 4:52 AM GMT
भगवान जगन्नाथ का रथयात्रा उत्सव आज, जानिए क्यों अधूरी है मूर्ति
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सृष्टि में 18 विद्याओं की निधि भगवान नारायण और मां श्रीमहालक्ष्मी की नगरी श्रीजगन्नाथ पुरी जो 'दैहिक,दैविक और भौतिक'इन त्रिविध तापों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करती है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सृष्टि में 18 विद्याओं की निधि भगवान नारायण और मां श्रीमहालक्ष्मी की नगरी श्रीजगन्नाथ पुरी जो 'दैहिक,दैविक और भौतिक'इन त्रिविध तापों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करती है,वहां

मंदिर की कथा
सत्ययुग में परमपिता ब्रह्मा से पांचवीं पीढ़ी में सूर्यवंशी राजा इंद्रदयुम्न हुए जो चक्रवर्ती सम्राट थे। देवर्षि नारद की सलाह पर राजा ने नारायण को प्रसन्न करने के लिए सहस्त्र अश्वमेध यज्ञ किया,तभी नारद जी ने कहा राजन आपका भाग्योदय होने वाला है पूर्ण आहुति करें जिससे यज्ञ सफल हो जाय। राजन श्वेतदीप पर जिन अविनाशी विष्णु का तुमने दर्शन किया उनके शरीर से गिरा हुआ रोम वृक्ष भाव को प्राप्त हो जाता है। वह इस पृथ्वी पर स्थावररूप में भगवान का अंशावतार होता है। भक्त वत्सल भगवान अब उसी वृक्ष रूप में अवतीर्ण हो रहे हैं। तुम्हारे ही शौभाग्य से सर्वपापहारी भगवान यहां सब लोगों के नेत्रों के अतिथि बनेंगे। राजन चार शाखाओं वाले इस वृक्ष रूप में प्रकट हुए भगवान विष्णु को तुम यज्ञ की महावेदी पर स्थापित करो।
नारद और राजा इंद्रदयुम्न को उस चार शाखाओं वाले वृक्ष में ब्रह्मा,विष्णु और शिवके दर्शन हुए। उन दोनों में वृक्ष से मूर्ति किस प्रकार बनेगी इसको लेकर चर्चा चल ही रही थी कि तभी ये आकाशवाणी हुई कि 'भगवान विष्णु अत्यंत गुप्त रखी हुई इस महावेदी पर स्वयं अवतीर्ण होंगे'। पन्द्रह दिनों तक इसे ढ़क दिया जाय। हाथ में हथियार लेकर उपस्थित हुआ यह जो बूढ़ा बढ़ई है इसे प्रवेश कराकर सब लोग यत्नपूर्वक दरवाजा बंद कर लें। जब तक मूर्तियों की रचना हो तब तक बाहर बाजे बजते रहें क्योंकि मूर्ति रचना का शब्द जिनके कान में पड़ेगा वह बहरा हो जाएगा। मूर्ति बनते हुए जो देखने की चेष्ठा करेगा उसके नेत्र अंधे हो जायेंगे। राजा ने उस आकाशवाणी के अनुसार व्यवस्था कर दी। क्रमशः पंद्रहवां दिन आते ही भगवान स्वयं चार विग्रहों बलभद्र,सुभद्रा,सुदर्शन चक्र और स्वयं जगन्नाथ रूप में प्रकट हुए और पुनः आकाशवाणी हुई कि राजन इन चारों प्रतिमाओं को वस्त्रों से भलीभाँति आच्छादित करें।
प्रतिमाओं के रंग
आकाशवाणी के अनुसार भगवान जगन्नाथ नीलमेघ के समान श्यामवर्ण धारण करें,बलभद्र शंख और चंद्रमा के समान गौरवर्ण से विराजमान हों,सुदर्शनचक्र का रंग लाल होना चाहिए और सुभद्रा देवी कुमकुम के समान अरुणवर्ण की होनी चाहिए। इन विग्रहों पर पहले का किया हुआ रंग आदि संस्कार छूटने पर प्रतिवर्ष नूतन संस्कार कराना चाहिए,श्रृंगारों से युक्त मूर्तियों का ही दर्शन करना चाहिए। राजन अत्यंत सुदृढ और हजार हाथ ऊँचा मंदिर बनवाकर उसी में भगवान को स्थापित करों। इस प्रकार भगवान जगन्नाथ का मंदिर निर्माण हुआ और ऋषियों-मुनियों तथा अनेकों विद्वानों द्वारा मंत्रोच्चार के साथ स्वयं ब्रह्मा जी ने वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि,पुष्य नक्षत्र और बृहस्पतिवार के दिन भगवान जगन्नाथ की प्रतिष्ठा की और मंत्रराज [ॐ नमों भगवते वासुदेवाय] का सहस्त्र बार जप किया।
तीनों रथों का निर्माण देवर्षि नारद की सलाह पर
नारद ने कहा,राजन वासुदेव के रथ में गरुड़ध्वज,सुभद्रा के रथ में कमल चिन्ह और बलभद्र के रथ में तालध्वज होना चाहिए। श्रीजगन्नाथ जी के रथ में 16,बलभद्र के रथ में 14 और सुभद्रा के रथ में 12 पहिये होने चाहिए।
रथयात्रा में शामिल होने की महिमा
जगन्नाथ जी की रथ यात्रा में शामिल होने का फल अक्षुण है। ब्रह्मा जी की स्तुति पर प्रकट होकर स्वयं जगन्नाथ ने कहा था कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मुझको,बलभद्र जी को और सुभद्रा को रथ पर बिठाकर महान उत्सव के लिए ब्राह्मणों को तृप्त करके 'गुण्डिचामंडप'नामक स्थान पर ले जाएं वहां मैं पहले भी प्रकट हुआ था । भक्तगण जैसे-जैसे एक-एक कदम रथ को आगे खींचेगे वे अपने एक-एक जन्म के अशुभ कर्मों को काटकर मेरे गोलोक धाम को प्राप्त होंगे। स्वयं परमेश्वर द्वारा कहे गए इस वचन के परिणामस्वरूप इस दिन रथयात्रा में लाखों की संख्या में भक्तगण शामिल होकर पूर्व के जन्मों में किये अपने अशुभ पापों का शमन करके वैकुण्ठ को जाते हैं ।
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