धर्म-अध्यात्म

मदासुर का वध करने भगवन गणेश ने लिया था एकदन्त का अवतार

Admin2
28 Aug 2022 10:07 AM GMT
मदासुर का वध करने भगवन गणेश ने लिया था एकदन्त का अवतार
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भगवान गणेश ने एकदन्त का अवतार मदासुर का वध करने के लिया था. इस अवतार में उन्होंने अपना वाहन मूषक अर्थात चूहे को बनाया. महर्षि च्यवन का पुत्र मदासुर एक पराक्रमी दैत्य था. अपने पिता की आज्ञा से वह शुक्राचार्य के पास गया और उनसे अपना शिष्य बनाने का आग्रह किया और कहा कि वह संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी बनना चाहता है. उसकी बात से संतुष्ट होकर शुक्राचार्य ने उसे शिष्य बनाया और ह्रीं नाम का एकाक्षरी शक्तिमंत्र दिया. मंत्र लेकर वह जंगल में तप करने के लिए चला गया. भगवती का ध्यान करते हुए उसे हजारों वर्षों तक कठोर तप किया, जहां उसका शरीर दीमकों की बांबी बन गया और चारों ओर वृक्ष उग आए. उसके तप से प्रसन्न होकर भगवती प्रकट हुईं और उन्होंने उसे निरोग रहने तथा संपूर्ण ब्रह्मांड का राज्य प्राप्त होने का वरदान दिया.

धरती जीतने के बाद मदासुर स्वर्ग का भी शासक बना
मदासुर ने पहले धरती पर अपना साम्राज्य स्थापित किया, फिर स्वर्ग पर चढ़ाई की और इंद्र आदि देवताओं को जीतकर स्वर्ग का शासक भी बन गया. उसने प्रमदासुर की कन्या सालसा से विवाह किया, जिससे उसे तीन पुत्र हुए. उसने भगवान शिव को भी पराजित किया और सभी जगहों पर असुरों का क्रूरतम शासन होने लगा. पृथ्वी पर धर्म-कर्म गायब हो गए. हर तरफ हाहाकार मच गया. चिंतित देवता महर्षि सनत्कुमार के पास गए और उनके सुझाव के अनुसार भगवान एकदन्त की उपासना करने लगे. सौ वर्ष की तपस्या के बाद मूषक वाहन भगवान एकदंत प्रकट हुए तथा वर मांगने के लिए के लिए कहा तो देवताओं ने मदासुर से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की.
भगवान एकदंत ने अपने परशु से किया मदासुर को अचेत
इधर जैसे ही मदासुर को पता लगा कि भगवान एकदंत ने देवताओं को वरदान दिया है तो गुस्से में वह अपनी विशाल सेना के साथ एकदंत से युद्ध करने चल पड़ा. भगवान एकदन्त रास्ते में ही प्रकट हो गए. राक्षसों ने देखा कि भगवान् एकदंत मूषक पर सवार हो चले आ रहे हैं और उनके हाथों में परशु , पाश शस्त्र हैं. उन्होंने असुरों से कहा कि तुम अपने स्वामी से कह दो यदि वह जीवित रहना चाहता है तो देवताओं से दुश्मनी छोड़कर उनका राज्य उन्हें वापस कर दे. इस पर तो मदासुर और भी क्रोधित हो गया और युद्ध के लिए तैयार हो गया. उसने जैसे ही अपने धनुष पर बाण चढ़ाना चाहा. भगवान् एकदन्त का परशु उसे लगा और वह बेहोश होकर गिर गया. बेहोशी टूटने पर मदासुर समझ गया कि यह सर्व समर्थ परमात्मा ही हैं. उसने हाथ जोड़कर स्तुति कीऔर कहा, प्रभो! आप मुझे क्षमा कर अपनी भक्ति प्रदान करें. भगवान एकदन्त ने प्रसन्न होकर कहा कि जहां मेरी पूजा आराधना हो, वहां तुम भूलकर भी न जाना और आज से तुम पाताल में रहोगे. देवता भी प्रसन्न होकर भगवान एकदंत की स्तुति करके अपने लोक चले गए.
एकदन्तावतारौ वै देहिनां ब्रह्मधारकः।
मदासुरस्य हन्ता स आखुवाहनगः स्मृतः।।
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