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जीवन सार: परमात्मा को पाने के लिए हमें अपने अंदर करने होंगे सबसे पहले ये बदलाव

ईश्वर का अर्थ क्या है? क्या यह कहीं बैठा कोई व्यक्ति है? परमात्मा कहीं बैठा नहीं है। हम जो सोचते हैं, जो विचारते हैं, केवल वही ईश्वर नहीं है। ईश्वर का अर्थ है, इस अखिल ब्रह्मांड में फैला विस्तार और उस विस्तार में छिपी हरेक पूर्णता। वह न तो स्थिर है, न ही वह गतिमान है। वह केवल वैकुंठ, कैलाश या फिर किसी और लोक में ही नहीं है, बल्कि वह हर जगह है। वह सूक्ष्म से सूक्ष्मतम है, विशाल से विशालतम है। जो पौधे हैं, जो सूर्य, चांद और तारे हैं, जो नदियां हैं, पहाड़ हैं, जंगल और जीव-जंतु हैं- यह सब उसका ही विस्तार है। पक्षियों में वही तो कलरव करता है, वृक्षों में फल-फूल और सुगंध भी वही है। चहुं ओर वही हवाओं में बह रहा है, उसी का शोर सागर में लहर बनकर घूमता है। आकाश के अनंत विस्तार में भी वही है। हम खुद उस लहर के एक सूक्ष्मतम रूप हैं, बस इसका बोध हो जाए, इतना ही काफी है।
मयंक मुरारी