धर्म-अध्यात्म

आइए जानते हैं, परशुराम जयंती का शुभ मुहूर्त, महत्व और पौराणिक कथा के बारे में

Gulabi
12 May 2021 3:09 AM GMT
आइए जानते हैं, परशुराम जयंती का शुभ मुहूर्त, महत्व और पौराणिक   कथा के बारे में
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वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जयंती मनाई जाती है

जनता से रिश्ता बेबडेस्क। हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जयंती मनाई जाती है. इस बार परशुराम जयंती 14 मई 2021 (शुक्रवार) को है. भगवान परशुराम का जन्म त्रेता युग में ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था. भगवान परशुराम भार्गव वंश में भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के छठे अवतार हैं. इस दिन उनके भक्त उपवास करते हैं और विधि- विधान से भगवान परशुराम की पूजा करते हैं. आइए आपको बताते हैं परशुराम जयंती का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व के बार में

परशुराम जयंती शुभ मुहूर्त

वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि आरंभ- 14 मई 2021 (शुक्रवार) सुबह 05 बजकर 40 मिनट पर
वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि समाप्त- 15 मई 2021 (शनिवार) सुबह 08 बजे
परशुराम जयंती का महत्व
हिन्दु धर्म के अनुसार भगवान परशुराम ने ब्राह्माणों और ऋषियों पर होने वाले अत्याचारों का अंत करने के लिए जन्म लिया था. कहते हैं कि परशुराम जयंती के दिन पूजा-पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि जिन लोगों की संतान नहीं होती है उन लोगों को इस व्रत को करना चाहिए. इस दिन भगवान परशुराम के साथ विष्णु जी का आशीर्वाद भी मिलता है.
पूजा-विधि
-हिंदू धर्म में परशुराम जयंती का दिन बहुत अहम माना जाता है. इस दिन सूर्योदय से पहले पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए. अगर आपके आसपास नदी नहीं है तो पानी की बाल्टी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करें.
-इसके बाद धूप दीप जलाकर व्रत करने का संकल्प लें.
-भगवान विष्णु को चंदन लगाकर विधि-विधान से उनकी पूजा करें. फिर भगवान को भोग लगाएं.
-आप चाहे तो परशुराम जी के मंदिर जाकर उनके दर्शन भी कर सकते हैं लेकिन कोरोना काल में ऐसा करने से बचें और उन्हें मन में ही याद करें.
-इस दिन व्रत करने वाले लोगों को किसी तरह का कोई अनाज नहीं खाना चाहिए.
परशुराम जी की पौराणिक कथा
भगवान परशुराम बहुत जल्दी क्रोधित हो जाते थे. उनके इस स्वभाव से भगवान गणेश भी नहीं बच पाएं थे. पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान परशुराम एक बार कैलाश में भगवान शिव से मिलने आए थे. भगवान गणेश ने उन्हें जाने से रोक दिया. इस बात से क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने फरसे से उनका एक दांत तोड़ दिया था. इसके बाद से भगवान गणेश एकदंत कहलाने लगें

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