धर्म-अध्यात्म

आइए जानते हैं भगवान शिव ने अपने शस्त्र त्रिशूल से सूर्य देव पर प्रहार क्यों कर दिया था?

Kajal Dubey
23 Jan 2022 2:17 AM GMT
आइए जानते हैं भगवान शिव ने अपने शस्त्र त्रिशूल से सूर्य देव पर प्रहार क्यों कर दिया था?
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भोलेनाथ के शरण में जो जाता है, उसकी वे रक्षा करते हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भगवान शिव (Lord Shiva) भोलेनाथ हैं. उनकी शरण में जो जाता है, उसकी वे रक्षा करते हैं. उसकी पुकार सुनते हैं. वे आसानी से भक्तों की पुकार सुन प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. ऐसे ही एक असुर माली और सुमाली अपनी पुकार लेकर महादेव (Mahadev) की शरण में पहुंच गए. फिर ऐसा हुआ कि किसी ने कभी परिकल्पना भी नहीं की थी. भगवान शिव के क्रोध का शिकार सूर्य देव (Surya Dev) को होना पड़ा. ​भगवान शिव ने अपने शस्त्र त्रिशूल से सूर्य देव पर प्रहार कर दिया था, जिससे पूरी सृष्टि अंधकारमय हो गई थी. क्या थी वो घटना, आइए जानते हैं उसके बारे में.

भगवान शिव के क्रोध का शिकार हुए सूर्य देव
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, असुर माली और सुमाली को गंभीर शारीरिक पीड़ा थी. सूर्य देव की अवहेलना के कारण वे इससे मुक्ति नहीं पा रहे थे. उन दोनों ने भगवान शिव के शरण में जाने का निश्चय किया. उन दोनों ने भगवान शिव के समक्ष अपनी पीड़ा व्यक्त की और न ठीक होने का कारण सूर्य देव की अवहेलना को बताया.
असुर माली और सुमाली की व्यथा सुनकर भगवान शिव व्याकुल हो उठे, इसके परिणास्वरुप उनको क्रोध आ गया. उन्होंने तत्काल त्रिशूल से सूर्य देव पर प्रहार कर दिया. भगवान शिव के वार को कौन सहन कर सकता था. त्रिशूल के वार से सूर्य देव अचेत होकर अपने रथ से नीचे गिर गए और पूरी सृष्टि अंधकारमय हो गई.
सूर्य देव कश्यप ऋषि के पुत्र हैं. सृष्टि में अंधकार होने और भगवान शिव के प्रहार के बारे में कश्यप ऋषि को जब पता चला तो वे क्रोधित हो गए. उन्होंने भगवान शिव को पुत्र की दशा पर दुखी होने का श्राप दिया. कहा जाता है कि इस श्राप की वजह से ही भगवान शिव ने गणेश जी का सिर काटा था.
दूसरी तरफ जब शिव जी का क्रोध शांत हुआ, तो उन्होंने देखा कि सृष्टि अंधकारमय है. तब उन्होंने सूर्य देव को जीवनदान दिया. सूर्य देव की चेतना वापस आई, तो उनको पिता के श्राप की जानकारी हुई. वे दुखी हो गए, तब ब्रह्मा जी ने उनको समझाया. भगवान शिव, ब्रह्मा जी, भगवान विष्णु, उनके पिता कश्यप ऋषि ने आशीर्वाद दिया. फिर सूर्य देव अपने रथ पर सवार होकर सृष्टि को प्रकाशमय करने लगे.
ब्रह्मा जी ने असुर माली और सुमाली को कष्ट से मुक्ति के लिए सूर्य उपासना का महत्व समझाया. दोनों ने विधि विधान से सूर्य देव की पूजा की, जिससे सूर्य देव प्रसन्न हुए और उन दोनों को रोगों से मुक्त किया.


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