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धर्म-अध्यात्म
जानें मौनी अमावस्या पर क्यों करना चाहिए गंगा स्नान? क्या है इसका महत्व
Triveni
11 Feb 2021 12:50 AM GMT
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हिन्दू कलेंडर के अनुसार, माघ मास की अमावस्या तिथि को ही मौनी अमावस्या या माघी अमावस्या कहा जाता है।
जनता से रिश्ता वेबडेसक | हिन्दू कलेंडर के अनुसार, माघ मास की अमावस्या तिथि को ही मौनी अमावस्या या माघी अमावस्या कहा जाता है। इस वर्ष मौनी अमावस्या आज 11 फरवरी 2021 को है। मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इसका महत्व सागर मंथन से निकले अमृत कलश से जुड़ा हुआ है। मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान के बाद तिल के लड्डू, तिल, तिल का तेल, वस्त्र, आंवला, सर्दी के वस्त्र, कंबल आदि दान करने का विधान है। मौनी अमावस्या के दिन पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान कर्म आदि भी किए जाते हैं। इस दिन जो लोग व्रत रखते हैं, उनको मौन व्रत रखना चाहिए, इससे उनका आत्मबल मजबूत होता है। इस दिन पीपल के वृक्ष की भी पूजा की जाती है। जागरण अध्यात्म में आज जानते हैं कि मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान का क्या महत्व है।
मौनी अमावस्या को गंगा स्नान का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति को तीन प्रकार के लाभ होते हैं। तन और मन निर्मल होता है, पाप मिटते हैं और ग्रह दोष भी शांत होते हैं।
ऐसा माना जाता है कि प्रयागराज में मौनी अमावस्या के दिन गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम पर देवी—देवता वास करते हैं। संगम में स्नान से वे व्यक्तियों को कष्टों तथा पापों से मुक्ति देते हैं। संगम स्नान के बाद दान करने से धन वृद्धि का आशीष मिलता है।
इसके अतिरिक्त यह भी मान्यता है कि मौनी अमावस्या को संगम पर पितर भी पवित्र स्नान का लाभ लेने के लिए आते हैं। इस दिन जो लोग पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण या श्राद्ध कर्म करते हैं, उनके पितर तृप्त होकर उन्हें सुखी जीवन और वंश वृद्धि का अशीष देते हैं।
गंगा स्नान का अमृत कलश रहस्य
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवों और असुरों ने मिलकर सागर मंथन किया था, तब भगवान धनवंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। उस अमृत कलश को पाने के लिए देवों और असुरों के बीच छीना-झपटी होने लगी। इस वजह से उस कलश से अृमत की कुछ बूंदे प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक की पवित्र नदियों में गिर गईं। तब से इन पवित्र नदियों मुख्यत: गंगा में धार्मिक महत्व वाले पर्व, त्योहार या तिथि को स्नान करने की परंपरा बन गई। ऐसा माना जाता है कि इन नदियों में स्नान से अमृत स्नान के समान पुण्य प्राप्त होता है।
डिसक्लेमर
'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'
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