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जनता से रिश्ता बेवङेस्क | हरिद्वार में कुंभ मेला आरंभ हो गया है और कोरोना वायरस के कहर के बाद भी काफी लोग मेले में पहुंच रहे हैं. आम लोगों के स्थान से कुंभ में साधुओं का स्नान काफी चर्चा में रहता है और शाही स्नान के दिन लाखों साधु कुंभ में स्नान करते हैं. साधुओं के कई अखाड़े होते हैं और सामान्य साधुओं के साथ नागा साधु और अघोरी बाबा भी इस दौरान काफी खबरों में रहते हैं. अघोरी बाबा को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं और कई लोग उन्हें देखने भी कुंभ पहुंचते हैं.
अघोरी बाबाओं का नाम सुनते है कि लोगों के दिल में डर की भावना आती है और नज़रों के सामने एक रौद्र रूप नज़र आता है. अघोरी बाबाओं को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं और उन्हें समाज में भी उनकी अन्य साधुओं की तरह जगह नहीं है. ऐसे में जानते हैं कि आखिर अघोरी बाबा कौन होते हैं और आखिर क्यों लोग उनसे इतना डरते हैं… जानते हैं अघोरी बाबाओं से जुड़ी कई खास बातें…
कौन होते हैं अघोरी
अघोर दर्शन का सिद्दांत ये है कि आध्यात्मिक ज्ञान हासिल करने के लिए ईश्वर की प्राप्ति करने के लिए तो शुद्धता के नियमों से दूर जाना पड़ेगा. अघोरी अच्छाई और बुराई के सामान्य नियमों को खारिज करते हैं. उनका आध्यात्म का तरीका थोड़ा अलग है, जिसमें मांस का सेवन या खुल का मल खाना आदि शामिल है. कहा जाता है कि अघोरियों का मानना है कि वो दूसरों की ओर से त्यागी गई इन चीजों का सेवन कर परम चेतना को प्राप्त करते हैं.
वैसे इतिहास की बात करें तो यह शब्द 18वीं शताब्दी में सामने आया था. साथ ही अघोर और कपालिका संप्रदाय एक दूसरे से काफी मिलते जुलते हैं. आज भले ही अघोरियों को लेकर कुछ भी भ्रांतियां हो, लेकिन कई जानकार कहते हैं कुछ अघोरी काफी बुद्धिमान होते हैं. यहां तक कि कई राजाओं को अघोरी ही सलाह दिया करते थे. लोग भले ही इन्हें डरावना समझते हो, लेकिन वो काफी सरल होते हैं और प्रकृति के साथ रहना पसंद करते हैं. साथ ही हर किसी में ईश्वर का अंदर देखते हैं.
काफी सरल होते हैं अघोरी
अघोरी बाबाओं को लेकर कई जानकारों का कहना है कि वो ना वो किसी से नफरत करते हैं और ना किसी चीज को खारिज करते हैं. इसलिए वो जानवर या इंसान के मांस में भेदभाव नहीं करते हैं. बहुत कम साधु अघोर का अच्छे पालन करते हैं और कुंभ में आधे से ज्यादा असली अघोरी साधु नहीं देते हैं. सबके कल्याण की कामना करते हैं. वे भी अन्य साधुओं की तरह मोह-माया से दूर रहते हैं और अपने परिवार आदि का त्याग कर देते हैं.
ऐसे करते हैं पूजा
अघोरी शिव और शिव की पत्नी शक्ति की पूजा करते हैं. जहां लोग श्मशान को मौत का प्रतीक मानते हैं और वहां रहते हैं. अघोरी खुद को पूरी तरह से शिव में लीन करना चाहते हैं और तीन तरह से अघोरी साधना करते हैं. इसमें शव साधना, शिव साधना और श्मशान साधना शामिल है. शव और शिव साधना में वो किसी शव के साथ साधना करते हैं और श्मशान साधना में वो श्मशान में जाकर साधना करते हैं. इसमें इनकी पूजा करने के तरीके काफी अलग अलग होते हैं.
नागा साधुओं से हैं अलग
अगर नागा साधुओं की बात करें तो वो नागा साधु से काफी अलग होते हैं. नागा साधु अखाड़ों में रहते हैं, जबकि अघोरी श्मशान में साधना करते हैं. इसके अलावा अघोरी मांस आदि का सेवन करते हैं. साथ ही नागा साधुओं के गुरू होते हैं जबकि अघोरी शिव को ही अपना गुरू मानते हैं. वहीं, दोनों के पूजा करने का तरीका भी काफी अलग है.
क्या है कहानियां?
कहा जाता है कि अघोरी बाबा खुद का मल खाते हैं और किसी इंसानी मांस भी आराम से खा लेते हैं. अघोरी साधुओं के लिए कहा जाता है कि ये लोगों के कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं और किसी में भी भेदभाव नहीं करते हैं. साथ ही कहा जाता है कि वो लाशों का इस्तेमाल पूजा के लिए करते हैं और काफी अघोरी नग्न भी रहते हैं.