धर्म-अध्यात्म

जानें आमलकी एकादशी व्रत पर आंवले के पेड़ की पूजा का महत्व

Apurva Srivastav
17 March 2021 2:33 PM GMT
जानें आमलकी एकादशी व्रत पर आंवले के पेड़ की पूजा का महत्व
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होली से तीन दिन पहले यानी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी व्रत होता है.

होली से तीन दिन पहले यानी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी व्रत होता है. शास्त्रों में एकादशी के सभी व्रत को भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है. चूंकि खरमास को भगवान विष्णु की विशेष पूजा का महीना माना जाता है, खरमास के दौरान आमलकी एकादशी व्रत पड़ने से इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है.

शास्त्रों में आमलकी एकादशी व्रत को चारों पुरुषार्थों यानी काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष प्रदान करने वाला व्रत बताया गया है. इस व्रत को रखने वाले के जीवन में धन वैभव की कमी नहीं रहती. वो शख्स धर्म के रास्ते पर चलते हुए कुशल दांपत्य जीवन जीता है और अंत में मोक्ष की राह पर अग्रसर होता है. इस बार आमलकी एकादशी 25 मार्च 2021 को पड़ रही है. जानिए इससे जुड़ी खास बातें.

ये है शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि 24 मार्च 2021 दिन बुधवार सुबह 10 बजकर 32 मिनट पर शुरू होकर 25 मार्च 2021 दिन गुरुवार सुबह 09 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि के हिसाब से ये व्रत 25 मार्च को ही रहा जाएगा. वहीं व्रत पारणा का शुभ मुहूर्त 26 मार्च 2021 दिन शुक्रवार सुबह 06 बजकर 53 मिनट से 08 बजकर 12 मिनट तक रहेगा.
आंवले के पेड़ की पूजा का महत्व
आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का भी चलन है. माना जाता है कि सृष्टि की रचना करने के लिए जब भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को जन्म दिया था, तभी आंवले का वृक्ष भी जन्मा था. शास्त्रों में पीपल के साथ-साथ आंवले के वृक्ष को भी पूज्यनीय माना गया है और इसमें भगवान का वास माना गया है. इस दिन पूजा के दौरान भगवान विष्णु को आंवला जरूर समर्पित करना चाहिए. साथ ही खुद भी उसका सेवन करना चाहिए. मान्यता है कि आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने से सौ गायों को दान करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है.
ये है कथा
प्राचीन काल में चित्रसेन नामक एक राजा था. वो भगवान विष्णु का भक्त था और आमलकी एकादशी के प्रति उसकी विशेष श्रद्धा थी. एक बार शिकार करते समय जंगल में उसे कुछ डाकुओं ने घेर लिया और शस्त्रों से हमला कर दिया. उस दिन राजा का आमलकी एकादशी का व्रत था.
डाकू राजा पर जिस शस्त्र से भी वार करते वो शस्त्र फूलों में बदल जाता. ये देखकर राजा को भी बड़ी हैरानी हुई. कुछ देर में राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति निकली और डाकू वहीं मर गए. इसके बाद वो शक्ति भी अदृश्य हो गई. इसके बाद आकाशवाणी हुई कि हे राजन! तुम्हारे व्रत के प्रभाव से आज ये सभी डाकू मारे गए हैं.
तुम्हारी देह से आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति उत्पन्न हुई थी, उसी शक्ति ने इनका वध किया है. अब वो शक्ति फिर से तुम्हारे शरीर के भीतर है. ये सब सुनकर राजा के मन में आमलकी एकादशी के प्रति श्रद्धा और ज्यादा बढ़ गई और वापस आकर उसने सारी घटना राज्य की प्रजा को सुनाकर इस एकादशी की महिमा का गुणगान किया.


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