धर्म-अध्यात्म

जानें कैसे हुई थी काल भैरव की उत्पत्ति, क्यों काट दिया दक्ष का सिर?

Triveni
7 Dec 2020 12:57 PM GMT
जानें कैसे हुई थी काल भैरव की उत्पत्ति, क्यों काट दिया दक्ष का सिर?
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अगहन या मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव के अंश काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| अगहन या मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव के अंश काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। इस तिथि को काल भैरव जयंती के रूप में मनाया जाता है। काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध के परिणाम स्वरुप हुआ था। काल भैरव के जन्म के संदर्भ में दो कथाएं प्रचलित हैं पहली ब्रह्मा जी से संबंधित और दूसरी कथा राजा दक्ष के घमंड को चूर करने से संबंधित है। जागरण अध्यात्म में पहली कथा के बारे में बताया जा चुका है। आज हम आपको काल भैरव की उत्पत्ति की दूसरी कथा बता रहे हैं।

माता सती के पिता राजा दक्ष थे। सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध भगवान शिव को अपना जीवन साथी चुन लिया और उनसे विवाह कर लिया। उनके इस फैसले से राजा दक्ष बहुत दुखी और क्रोधित हुए। वे भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। उन्होंने भगवान शिव को अपमानित करने के लिए एक यज्ञ किया, जिसमें सती तथा भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। सूचना मिलने पर सती ने भगवान शिव से उस यज्ञ में शामिल होने के लिए निवेदन किया। तब उन्होंने सती को समझाया कि बिना निमंत्रण किसी भी आयोजन में नहीं जाना चाहिए, चाहें वह अपने पिता का घर ही क्यों न हो। लेकिन सती नहीं मानी, उन्होंने सोचा कि पिता के घर जाने में कैसा संकोच? वे हट करने लगीं।
वे अपने पिता के घर चली गईं। यज्ञ हो रहा था। सभी देवी, देवता, ऋषि, मुनि, गंधर्व आदि उसमें उपस्थित थे। सती ने पिता से महादेव त​था उनको न बुलाने का कारण पूछा, तो राजा दक्ष भगवान शिव का अपमान करने लगे। उस अपमान से आहत सती ने यज्ञ के हवन कुंड की अग्नि में आत्मदाह कर लिया। ध्यान मुद्रा में लीन भगवान शिव सती के आत्मदाह करने से अत्यंत क्रोधित हो उठे। राजा दक्ष के घमंड को चूर करने के लिए भगवान शिव के क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव ने काल भैरव को उस यज्ञ में भेजा।
काल भैरव का रौद्र रूप देखकर यज्ञ स्थल पर मौजूद सभी देवी-देवता, ऋषि भयभीत हो गए। काल भैरव ने राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया। तभी भगवान शिव भी वहां पहुंचे और सती के पार्थिक शरीर को देखकर अत्यंत दुखी हो गए। वे सती के पार्थिक शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करने लगे। ऐसी स्थिति देखकर भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। सती के अंग पृथ्वी पर जहां जहां गिरे, वहां वहां शक्तिपीठ बन गए। जहां आज भी पूजा होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, काल भैरव उन सभी शक्तिपीठों की रक्षा करते हैं।


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