धर्म-अध्यात्म

जानें कामदेव और शिव से भी जुड़ी है होली कीन पौराणिक और प्रामाणिक कथा

Apurva Srivastav
27 March 2021 5:50 PM GMT
जानें कामदेव और शिव से भी जुड़ी है होली कीन पौराणिक और प्रामाणिक कथा
x
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वर्ष के अंतिम माह फाल्गुन माह पूर्णिमा को होलिका दहन होता है। होली की पौराणिक कथा चार घटनाओं से जुड़ी हुई है।

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वर्ष के अंतिम माह फाल्गुन माह पूर्णिमा को होलिका दहन होता है। होली की पौराणिक कथा चार घटनाओं से जुड़ी हुई है। पहली होलिका और भक्त प्रहलाद, दूसरी कामदेव और शिव, तीसरी राजा पृथु और राक्षसी ढुंढी और चौथी श्रीकृष्ण और पूतना। आओ जानते हैं कामदेव और शिव की पौराणिक और प्रामाणिक कथा।

जब माता सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में कूदकर भस्म हो जाती है तो उसके बाद शिवजी गंगा और तमसा नदी के संगम किनारे गहन तपस्या में लीन हो जाते हैं। इस दौरान दो घटनाएं घटती हैं पहली तो यह कि तारकासुर नामक असुर तपस्या करके ब्रह्मा से अमरता का वरदान मांगता है तो ब्रह्माजी कहते हैं कि यह संभव नहीं कुछ और मांगों तो वह यह वरदान मांग लेता है कि मुझे सिर्फ शिव पुत्र ही मार सके। क्योंकि तारकासुर जानता था कि सती तो भस्म हो गई है और शिवजी तपस्या में लीन है जो हजारों वर्ष तक लीन ही रहेंगे। ऐसे में शिव का कोई पुत्र ही नहीं होगा तो मेरा वध कौन करेगा? यह वरदान प्राप्त करके वह तीनों लोक पर अपना आतंक कायम कर देता है और स्वर्ग का अधिपति बन जाता है।
दूसरी घटना यह कि इसी दौरान माता सती अपने दूसरे जन्म में हिमवान और मैनादेवी के यहां पार्वती के रूप में जन्म लेकर शिवजी की तपस्या में लीन हो जाती है उन्हें पुन: प्राप्त करने हेतु।
जब यह बात देवताओं को पता चलती है तो सभी मिलकर विचार करते हैं कि कौन शिवजी की तपस्या भंग करें। सभी माता पार्वती के पास जाकर निवेदन करते हैं। माता इसके लिए तैयार नहीं होती है। ऐसे में सभी देवताओं की अनुशंसा पर कामदेव और देवी रति शिवजी की तपस्या भंग करने का जोखिम उठाते हैं।
शिवजी के सामने फाल्गुन मास में कामदेव और रति नृत्य और गान करते हैं और फिर कामदेव आम के पेड़ के पीछे छिपकर एक-एक करके अपने पुष्प बाण को शिवजी पर छोड़ते हैं। अंत में एक बाण उनके हृदय पर लगता है जिसके चलते शिवजी की तपस्या भंग हो जाती है। तपस्या भंग होते ही उन्हें आम के पेड़ के पीछे छुपे कामदेव नजर आते हैं तो वे क्रोध में अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर देते हैं।
यह देखकर देवी रति के साथ ही सभी देवी और देवता दु:खी हो जाते हैं। अपने पति की राख को देखकर देवी रति विलाप करने लगती हैं और कहती हैं कि इसमें मेरे पति की कोई गलती नहीं थी। मेरे साथ क्या करो भोलेनाथ। मेरे पति को पुन: जीवित करो।
जब भगवान शिव को यह ज्ञात होता है कि संसार के कल्याण के लिए देवताओं की बनाई योजना के तहत ही कामदेव कार्य कर रहे थे तो उनका क्रोध शांत होता है। तब वे राख में से देवी रति के पति कामदेव की आत्मा को प्रकट कर देते हैं और फिर शिव देवी रति को वचन देते हैं कि द्वापर युग में य‍दुकुल में जब श्रीविष्णु कृष्ण रूप में जन्म लेंगे तो उनके पुत्र के रूप में तुम्हारे पति का जन्म होगा, जिसका नाम प्रद्युम्न रहेगा। उस काल में संभरासुर का वध करने के बाद तुम्हारे पति से पुन: तुम्हारा मिलन होगा।
इस वरदान से सभी देवता खुश हो जाते हैं। शिवजी पार्वती से विवाह करने की सहमति भी देते हैं। यह सुनकर प्रसन्न होकर सभी देवता फूल और रंगों की वर्षा करके खुशियां मनाते हैं और दूसरे दिन उत्सव मनाते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार होलिका का दहन होली के दिन किया जाता है और दूसरे दिन धुलैंडी पर रंग खेला जाता है। धुलैंडी पर रंग खेलने की शुरुआत देवी-देवताओं को रंग लगाकर की जाती है। इसके लिए सभी देवी-देवताओं का एक प्रिय रंग होता है और उस रंग की वस्तुएं उनको समर्पित करने से शुभता मिलती है, उनकी कृपा प्राप्त होती है, जीवन में समृद्धि मिलती है, खुशहाली आती है और धन-धान्य से घर भरे हुए होते हैं।


Next Story