धर्म-अध्यात्म

जानें भगवान रुद्र भैरव की संक्षिप्त जानकारी

Apurva Srivastav
13 March 2021 1:33 PM GMT
जानें भगवान रुद्र भैरव की संक्षिप्त जानकारी
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काल भैरव और बटुक भैरव की पूजा का प्रचलन है। श्रीलिंगपुराण 52 भैरवों का जिक्र मिलता है।

मुख्यत: काल भैरव और बटुक भैरव की पूजा का प्रचलन है। श्रीलिंगपुराण 52 भैरवों का जिक्र मिलता है। मुख्य रूप से आठ भैरव माने गए हैं- 1.असितांग भैरव, 2. रुद्र या रूरू भैरव, 3. चण्ड भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाली भैरव, 7. भीषण भैरव और 8. संहार भैरव। आदि शंकराचार्य ने भी 'प्रपञ्च-सार तंत्र' में अष्ट-भैरवों के नाम लिखे हैं। तंत्र शास्त्र में भी इनका उल्लेख मिलता है। इसके अलावा सप्तविंशति रहस्य में 7 भैरवों के नाम हैं। इसी ग्रंथ में दस वीर-भैरवों का उल्लेख भी मिलता है। इसी में तीन बटुक-भैरवों का उल्लेख है। रुद्रायमल तंत्र में 64 भैरवों के नामों का उल्लेख है। आओ जानते हैं भगवान रुद्र या रूरू भैरव की संक्षिप्त जानकारी।

कौन है रूरु भैरव :
रुरु भैरव: भैरव का रुरु (गुरु) रूप अत्यंत प्रभावी व आकर्षक है। उनके हाथों में कुल्हाड़ी, पात्र, तलवार और कपाल है तथा उनकी कम में एक सर्प लिपटा हुआ है बैल पर सवारी करते हैं और इनकी पूजा से ज्ञान की प्राप्त होती है। इनकी पत्नी का नाम माहेश्वरी है। ब्रह्मवैवर्त पुराण अनुसार रूरु भैरव की उत्पत्ति श्रीकृष्‍ण के दाहिने नेत्र से हुई थी।
मंदिर : तंत्रसार और ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंडान्तर्गत दुर्गोपाख्यान में आठ पूज्य निर्दिष्ट हैं-महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रूरू भैरव, काल भैरव, क्रोध भैरव, ताम्रचूड भैरव, चंद्रचूड भैरव। काशी में अष्ट भैरव के मंदिर है जिसमें रूरू भैरव का मंदिर हनुमान घाट हरिश्चन्द्र घाट के निकट ही है। इनका खास मंदिर रत्नगिरीश्वर (तमिलनाडु) में है। रूरु भैरव का पूर्व दक्षिण दिशा के स्वामी और कार्तिक नक्षत्र है। इनका रत्न माणिक है।

इनकी पूजा से मिलती ये कृपा : भैरवजी का यह रूप विशेष दौर पर संपत्ति, धन और समृद्धि प्रदान करने वाला है। इन भैरव की उपासना करने से नौकरी और रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं। घर में प्रेमपूर्ण वातावरण निर्मित होता है। जीवन में हर प्रकार के संकट से रक्षा होती है।
इनका मंत्र है : ॐ भं भं ह्रौं रूरु भैरवाये नम:।।


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