धर्म-अध्यात्म

इस दिन पड़ेगी साल की अंतिम एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Subhi
27 Nov 2022 4:40 AM GMT
इस दिन पड़ेगी साल की अंतिम एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
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8 दिसंबर 2022 के बाद हिंदू पंचांग का दसवां महीना पौष महीना शुरू हो जाएगा। हिंदू धर्म में पौष माह बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस महीने में खासतौर पर सूर्यदेव की पूजा की जाती है। पौष माह में साल की अंतिम एकादशी मनाई जाएगी। हिन्दी पंचांग के अनुसार, साल में 24 एकादशी पड़ती हैं और इस तरह से हर महीने 2 एकादशी मनाई जाती है। सभी एकादशियों काअपना विशेष महत्व है और इसीलिए इन्हें अलग नामों से जाना जाता है। एकादशी का दिन श्री हरि विष्णु को समर्पित माना जाता है। इस दिन जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत नियम और श्रद्धा के साथ करता है, उसे इस संसार में सुखों की प्राप्ति होती है। पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस बार सफला एकादशी 19 दिसंबर को पड़ रही है। ये साल 2022 की अंतिम एकादशी होगी। आइए जानते हैं सफला एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व के बारे में..

सफला एकादशी 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त

पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि आरंभ: 19 दिसंबर 2022, सोमवार, प्रातः 03:32 से

पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त: 20 दिसंबर 2022, मंगलवार, तड़के 02:32 तक

सफला एकादशी पारण समय

20 दिसंबर 2022, मंगलवार, प्रातः 08:05 मिनट से प्रातः 09:13 मिनट तक

सफला एकादशी 2022 का महत्व

सफला एकादशी के महत्व को 'ब्रह्मांड पुराण' में भगवान कृष्ण और राजा युधिष्ठिर के बीच एक संवाद के रूप में वर्णित किया गया है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, यह माना जाता है कि 100 राजसूय यज्ञों सहित कुल 1000 अश्वमेध यज्ञ भी भक्त को सफला एकादशी के कठिन और पवित्र व्रत का पालन करने वाले से अधिक लाभ प्रदान नहीं करेंगे। सफला एकादशी भक्तों को वास्तविक जीवन में उनके सभी सपनों, लक्ष्यों और इच्छाओं को पूरा करने में सहायता करने की क्षमता रखती है। यह भक्तों को आंतरिक शांति भी प्रदान करता है।

सफला एकादशी पूजन विधि

इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को प्रात: स्नान आदि करने के बाद अच्युत भगवान की आरती करनी चाहिए और भोग लगाना चाहिए।

अगरबत्ती, नारियल, सुपारी, आंवला, अनार और लौंग से पूजा करें।

दीपदान और रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है।

द्वादशी के दिन भगवान की पूजा करने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा दें.

इसके बाद द्वादशी के दिन भोजन ग्रहण करें।


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