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बरसाना में इस दिन मनाई जाएगी लड्डू होली, जाने इसके परंपरा
होली का त्योहार आने वाला है। देशभर में इसकी तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। भारत में एक ऐसी भी जगह है जहां होली का अलग ही जश्न होता है। वो जगह है कान्हा की नगरी मथुरा। हर साल की तरह इस साल भी ब्रज में होली की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। साथ ही ब्रज में होली का विशेष महत्व होता है। होली खेलने के लिए देश-विदेश से लाखों के श्रद्धालु ब्रज में आते हैं। ब्रज में होली का जश्न पहले से ही शुरू हो जाता है। ब्रज के विशेष होली महोत्सव की शुरुआत 10 मार्च से ही हो जाएगी, जिसमें सबसे पहले 10 मार्च को लड्डू होली का आयोजन किया जाएगा। मथुरा में लड्डू होली के अलावा फूलों की होली, लट्ठमार होली और रंगवाली होली का खूब जश्न मनाया जाता है। तो चलिए आज जानते हैं लड्डू होली की शुरुआत कैसे हुई और बारे में सबकुछ....
वैसे तो लड्डू को भोग व शगुन के तौर पर रखा जाता है। लड्डू खुशी के मौके पर बांटे जाने की परंपरा है, लेकिन बरसाना में लठामार होली से ठीक एक दिन पहले लोगों पर अबीर-गुलाल की तरह लड्डू फेंके जाते हैं। लड्डू होली, लट्ठमार होली से पहले लोगों के बीच मिठास घोलती है। कहा जाता है कि नंदगांव से होली खेलने के लिए बरसाना आने का आमंत्रण स्वीकारने की परंपरा इस होली से जुड़ी हुई है, जिसका आज भी पालन किया जा रहा है। आमंत्रण स्वीकारने के बाद यहां सैकड़ों किलो लड्डू बरसाए जाते हैं। इस लड्डू होली को देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं और लड्डू प्रसाद पाकर स्वयं को धन्य भी मानते हैं।
लड्डू होली को लेकर बहुत ही अनोखी कहानी है। कहा जाता है कि द्वापर में बरसाने से होली खेलने का आमंत्रण लेकर सखी नंदगांव गई थीं। होली के इस आमंत्रण को नन्दबाबा ने स्वीकार किया और इसकी खबर अपने पुरोहित के माध्यम से बरसाना में बृषभान जी के यहां भेजी। इसके बाद बाबा बृषभान ने नन्दगांव से आये पुरोहित को खाने के लिए लड्डू दिए। इस दौरान बरसाने की गोपियों ने पुरोहित के गालों पर गुलाल लगा दिया। पुरोहित के पास गुलाल नहीं था तो वे लड्डुओं को ही गोपियों के ऊपर फेंकने लगे। तभी से ये लीला लड्डू होली के रूप में विस्तृत रूप लेती चली गई और हर साल बरसाने में लड्डू होली खेली जाने की परंपरा शुरू हो गई।
मान्यता के अनुसार लड्डू होली के दिन सुबह पहर बरसाना की राधा न्योता लेकर नंद भवन पहुचंती है। जहां उस सखी रुपी राधा का जोरदार स्वागत किया जाता है। इसके बाद नंद गांव से शाम के समय पुरोहित रूपी सखा को राधा रानी के निज महल में भेजा जाता है। जो होली के निमंत्रण को स्वीकार कर बताने आते हैं। जहां पर लड्डुओं से उनका स्वागत किया जाता है। इसी को लड्डू होली कहा जाता है।
परंपरा के अनुसार, हर साल समूचा मंदिर प्रांगण राधा कृष्ण के प्रेम में सराबोर हो जाता है, जिसके बाद राधा कृष्ण के भजनों का और होली के गीतों का मंदिर प्रांगण में स्वर सुनाई देने लगता है। इस दिन लोग राधा कृष्ण के प्रेम में मग्न होकर नाचने लगते हैं। इस परंपरा का आयोजन द्वापर युग से ही होता चला आ रहा है।