धर्म-अध्यात्म

कृष्ण जन्माष्टमी 2022: जन्माष्टमी पर कैसे शुरू हुई दही हांडी की परंपरा?

Bhumika Sahu
17 Aug 2022 8:31 AM GMT
कृष्ण जन्माष्टमी 2022: जन्माष्टमी पर कैसे शुरू हुई दही हांडी की परंपरा?
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दही हांडी की परंपरा

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इस बार पंचांग भेद के कारण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami 2022) पर्व 18 व 19 अगस्त को मनाया जाएगा। जन्माष्टमी पर दही हांडी (Dahi Handi 2022) फोड़ने की परंपरा काफी पुरानी है। ये परंपरा किसने शुरू की, इस बात का जानकारी तो नहीं मिलती, लेकिन किसी समय छोटे से स्तर से शुरू हुई ये परंपरा आज पूरे देश में बड़े स्तर पर निभाई जाती है। महाराष्ट्र में इसका उत्साह देखते ही बनता है। इस परंपरा के पीछे भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की घटनाएं हैं। इस परंपरा के पीछे लाइफ मैनेजमेंट के कई सूत्र भी छिपे हैं। जन्माष्टमी के मौके पर जानिए इस परंपरा से जुड़ी खास बातें…

ये है कहानी दही हांडी परंपरा की (This is the story of Dahi Handi tradition)
श्रीमद्भागवत के अनुसार, बाल्यकाल में भगवान श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर लोगों के घरों से माखन चुराकर अपने मित्रों को खिला देते हैं और स्वयं भी खाते थे। जब यह बात गांव की महिलाओं को पता चली तो उन्होंने माखन की मटकी को ऊंचाई पर लटकाना शुरू कर दिया, जिससे श्रीकृष्ण का हाथ वहां तक न पहुंच सके। लेकिन नटखट कृष्ण की समझदारी के आगे उनकी यह योजना भी व्यर्थ साबित हुई। माखन चुराने के लिए श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाते और ऊंचाई पर लटकाई मटकी से दही और माखन चुरा लेते थे। इसी से प्रेरित होकर दही-हांडी का चलन शुरू हुआ।
ये है दही हांडी का लाइफ मैनेजमेंट (This is the life management of Dahi Handi)
- मक्खन एक तरह से धन का प्रतीक है। जब हमारे पास आवश्यकता से अधिक धन हो जाता है तो उसे हम संचित यानी इक्ट्ठा कर लेते हैं जबकि होने ये चाहिए धन अधिक होने पर पहले उसका कुछ भाग जरूरतमंदों को दान करें।
- श्रीकृष्ण माखन चुराकर पहले अपने उन मित्रों को खिलाते थे जो निर्धन थे। श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि आपके पास कोई वस्तु आवश्यकता से अधिक है तो पहले उसका दान करो, बाद में उसका संचय करो। इस बात का ध्यान सभी को रखना चाहिए।
- माखन और दही खाने से जुड़ा एक अन्य लाइफ मैनेजमेंट ये भी है कि बाल्यकाल में बच्चों को सही पोषण मिलना अति आवश्यक है। दूध, दही, माखन आदि चीजें खाने से बचपन से ही बच्चों का शरीर सुदृढ़ रहता है और वे आजीवन तंदुरुस्त बने रहते हैं।


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