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भगवान महावीर का यह सिद्धांत जानकर आप भी कभी नहीं बोलेंगे झूठ
भगवान महावीर का यह सिद्धांत जानकर आप भी कभी नहीं बोलेंगे झूठ
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | बचपन में भगवान महावीर का नाम वर्धमान था। वे कुंडपुर वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ व रानी त्रिशला के पुत्र थे। एक बार वर्धमान के कुछ मित्र उनसे मिलने आए। उन्होंने उनकी माता त्रिशला से पूछा, 'वर्धमान कहां है?' माता ने उत्तर दिया, 'वह ऊपर है।' मित्र वर्धमान को खोजते-खोजते वे सातवीं मंजिल पर पहुंचे, जहां राजा सिद्धार्थ बैठे थे। मित्रों ने सिद्धार्थ से पूछा तो उन्होंने बताया कि वह तो नीचे है। अब तो मित्र असमंजस में पड़ गए।
आखिर उन्होंने एक-एक मंजिल पर वर्धमान को खोजना शुरू किया तो वह चौथी मंजिल पर मिला। मित्रों ने पूछा, 'वर्धमान, आज जब हम आए, तो निचले तल पर माता ने कहा कि तुम ऊपर हो। ऊपर गए तो पिता ने कहा कि तुम नीचे हो। किसकी बात सच है?' वर्धमान ने उनकी बात सुनी और बाहर बैठा एक कौवा दिखाकर पूछा, 'बताओ इसका रंग कैसा है?' मित्र बोले, 'काला।' वर्धमान ने कहा, 'मगर इसका रक्त लाल है, इसलिए काले की अपेक्षा यह लाल है। इसकी हड्डियां सफेद हैं, इसलिए लाल की अपेक्षा सफेद भी है। परंतु इसका शरीर काला है, इस कारण यह सफेद की अपेक्षा में काला भी है।'
कुछ देर रुककर वर्धमान बोले, 'ऐसे ही जब मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूं तो मैं चौथी मंजिल पर हूं। नीचे माता ने कहा मैं ऊपर हूं तो उनकी अपेक्षा मैं ऊपर था। ऊपर सातवीं मंजिल पर पिताजी ने कहा कि मैं नीचे हूं तो उनकी अपेक्षा में मैं नीचे था। इस प्रकार दोनों की बातें सच हैं। सत्य को पाने के लिए हमें वस्तु के सभी पहलुओं को देखना चाहिए, तभी सत्य उपलब्ध हो सकता है।' वर्धमान की इस विचारधारा ने ही अनेकांतवाद के सिद्धांत को जन्म दिया, जिसने विश्व को विविधता में एकता का संदेश दिया।