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कोई भी शुभ कार्य का प्रारंभ श्री गणेश से होता है. जैसा कि भगवान श्री गणेश को विघ्नहर्ता भी कहते हैं, इसलिए कोई भी मांगलिक कार्य शुरू करने से पहले गणेश जी को पूजा जाता है,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क।
कोई भी शुभ कार्य का प्रारंभ श्री गणेश से होता है. जैसा कि भगवान श्री गणेश को विघ्नहर्ता भी कहते हैं, इसलिए कोई भी मांगलिक कार्य शुरू करने से पहले गणेश जी को पूजा जाता है, ताकि कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो. मान्यता है कि भगवान शिव और भगवान विष्णु ने भी अपना कार्य पूर्ण करने के लिए गणेश की पूजा की है. गणेश जी को कई प्रिय वस्तुओं का भोग लगाया जाता है, जैसे मोतीचूर के लड्डू, लाल रंग का जसवंती फूल, सिंदूर. लेकिन गणेश जी की पूजा में पवित्र तुलसी का उपयोग नहीं किया जाता.
पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है. तुलसी को पवित्र माना जाता है. परंतु भगवान गणेश जी की पूजा में तुलसी चढ़ाना वर्जित है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है.
क्यों गणेश जी की पूजा में वर्जित है तुलसी?
गणेश जी की पूजा में तुलसी को शामिल नहीं करने के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसके अनुसार एक बार गणेश जी समुद्र तट पर तपस्या कर रहे थे. तब वहां धर्मात्मज कन्या तुलसी अपनी विवाह के लिए पहुंची. गणेश जी के गले में चंदन, हार समेत रत्न थे, जिसमें वह काफी मनमोहक लग रहे थे. जिस कारण तुलसी का मन गणेश जी की ओर आकर्षित हो गया.
तब तुलसी ने गणेशजी को तपस्या के बीच विवाह का प्रस्ताव दिया, लेकिन तपस्या भंग होने के कारण गणेश जी क्रोधित हो गए और विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इस पर तुलसी ने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे.
तुलसी को मिला ये श्राप
इस पर गणेश जी ने भी तुलसी का विवाह राक्षस से होने का श्राप दे दिया. तुलसी ने फिर माफी मांगी. तब गणेश जी ने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखर्चूण नामक राक्षस से होगा. तुम एक पौधे का रूप धारण करोगी. कलयुग में तुम मोक्ष और जीवन देने वाली होगी, लेकिन मेरी पूजा में तुम्हारा प्रयोग नहीं होगा. कहा जाता है इस वजह से गणेश जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं होता है.
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