धर्म-अध्यात्म

जानिए गणेश पूजा में क्यों नहीं चढ़ाई जाती है तुलसी

Tara Tandi
15 Jun 2022 8:30 AM GMT
जानिए गणेश पूजा में क्यों नहीं चढ़ाई जाती है तुलसी
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शास्त्रीय मान्यता के अनुसार बुधवार का दिन देवताओं में अग्रपूज्य,शिव-गौरीनंदन भगवान श्रीगणेश को समर्पित है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार बुधवार का दिन देवताओं में अग्रपूज्य,शिव-गौरीनंदन भगवान श्रीगणेश को समर्पित है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत इनकी पूजा से ही होती है। शास्त्रों में बुधवार का दिन गणेशजी का माना गया है। इसके अनुसार,माता पार्वती की कृपा से जब बाल गणेश की उत्पत्ति हुई थी,तब उस समय भगवान शिव के धाम कैलाश में बुध देव उपस्थित थे। बुध देव की उपस्थिति के कारण श्रीगणेश जी की आराधना के लिए वह प्रतिनिधि वार हुए यानी बुधवार के दिन गणेश जी की पूजा का विधान बन गया। जिन जातकों की कुंडली में बुध दोष हो है अथवा जो शारीरिक,आर्थिक या मानसिक परेशानी से गुजर रहे हैं वे लोग इन कष्टों के निवारण के लिए बुधवार के दिन गणेशजी की पूजा करें,ऐसा करने से रिद्धि-सिद्धि के दाता श्री गणेश जी प्रसन्न होंगे और आपकी कुंडली का बुध दोष या किसी भी कार्य में आ रही विघ्न-बाधा भी दूर हो जाएगी। मान्यता है कि श्रद्धापूर्वक इस दिन गणेशजी के निमित्त व्रत,पूजा और इनकी कथा कहने से भक्तों के सारे विघ्न दूर हो जाते हैं एवं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

इसलिए नहीं चढ़ाई जाती है तुलसी
हिन्दू धर्म की मान्यता है कि भगवान विष्णु, श्रीराम,श्रीकृष्ण और हनुमानजी के भोग में तुलसी पत्र डालने से भगवान प्रसन्न होते हैं और प्रसाद को ग्रहण करते हैं। परंतु गणेशजी के भोग में तुलसी का प्रयोग वर्जित बताया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार गणेशजी गंगा नदी के किनारे तपस्या कर रहे थे। इसी कालावधि में धर्मात्मज की कन्या तुलसी विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर निकली। देवी तुलसी सभी तीर्थस्थलों का भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर पहुंची। गंगा तट पर देवी तुलसी ने देखा कि युवा गणेशजी तपस्या में लीन थे। शास्त्रों के अनुसार तपस्या में लीन गणेश जी रत्न जटित सिंहासन पर विराजमान थे। उनके समस्त अंगों पर चंदन लगा हुआ था। उनके गले में पारिजात पुष्पों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक हार पड़े थे,सुगन्धित चन्दन की माला धारण कर रखी थी। उनकी कमर में अत्यन्त कोमल रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था और उनकी छवि बड़ी मनमोहक लग रही थी।
देवी तुलसी श्रीगणेश के इस सुंदर स्वरूप पर मोहित हो गईं। उनके मन में गणेश से विवाह करने की इच्छा जाग्रत हुई। तुलसी ने विवाह की इच्छा से उनका ध्यान भंग किया। तब भगवान श्री गणेश ने तुलसी द्वारा तप भंग करने को अशुभ बताया और तुलसी की मंशा जानकर स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर उसके विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। विवाह प्रस्ताव ठुकराने पर तुलसी ने रुष्ट होकर गणेशजी को शाप दिया कि उनके एक नहीं बल्कि दो-दो विवाह होंगे। इस पर श्री गणेश ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा। एक राक्षस की पत्नी होने का शाप सुनकर तुलसी ने गणेशजी से माफी मांगी। तब गणेशजी ने तुलसी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा। किंतु फिर तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को प्रिय होने के साथ ही कलयुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली होगी, पर मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा। तब से ही भगवान श्री गणेश जी की पूजा में तुलसी चढ़ाना वर्जित माना गया है।
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