धर्म-अध्यात्म

जानिए क्यों महादेव और माता गौरी को समर्पित है ये दिन

Renuka Sahu
8 Jun 2022 4:29 AM GMT
Know why this day is dedicated to Mahadev and Mata Gauri
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फाइल फोटो 

ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महेश नवमी (Mahesh Navami) के नाम से जाना जाता है. इस दिन महादेव और माता गौरी का पूजन किया जाता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महेश नवमी (Mahesh Navami) के नाम से जाना जाता है. इस दिन महादेव और माता गौरी का पूजन किया जाता है. महेश नवमी का महेश्वरी समाज में खास महत्व माना जाता है. मान्यता है कि महेश नवमी के दिन ही महेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी. महेश्वरी समाज के लोग इस दिन को बड़े धूमधाम से मनाते हैं. इसे महेश जयंती के तौर पर भी जाना जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता गौरी का पूजन किया जाता है और उनके लिए व्रत भी रखा जाता है. महेश नवमी का व्रत हर मनोकामना को पूर्ण करने वाला बताया गया है. इस बार महेश नवमी 9 जून को मनाई जाएगी. जानिए इस दिन से जुड़ी जरूरी बातें.

महेश नवमी शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार नवमी तिथि 08 जून बुधवार को सुबह 08:30 बजे शुरु होगी और 09 जून को सुबह 08:21 बजे तक रहेगी. इसके बाद दशमी तिथि शुरु हो जाएगी. लेकिन उदया तिथि के हिसाब से नवमी तिथि 9 जून को मानी जाएगी. ऐसे में जो श्रद्धालु इस दिन व्रत रखना चाहते हैं, वे अपना व्रत 09 जून को रखें.
महेश नवमी का महत्व
महेश नवमी को महेश्वरी समाज की उत्पत्ति के दिन के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है. कहा जाता है कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रीय वंश के थे. एक बार जब वे शिकार पर निकले तो ऋषिमुनियों ने उन्हें श्राप दे दिया था. तब उन्होंने भगवान शिव का पूजन किया. ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन शिव जी ने उन्हें श्राप से मुक्त किया और उन्होंने हिंसा का मार्ग छोड़कर अहिंसा का मार्ग अपनाया. इसके बाद से महेश के नाम से महेश्वरी समाज बना. त​ब से हर साल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन को महेश नवमी के रूप में मनाया जाने लगा. इस दिन महेश्वरी समाज के लोग शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं. माता पार्वती और शिव के लिए व्रत रखते हैं और तमाम जगहों पर कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है.
ऐसे की जाती है शिव और गौरी की पूजा
इस दिन सुबह जल्दी उठकर लोग भगवान की पूजा और व्रत का संकल्प लेते हैं. मंदिर में जाकर शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है. उन्हें भांग, धतूरा, पुष्प, गंगाजल और बेलपत्र आदि अर्पित किए जाते हैं. महिलाएं सोलह श्रृंगार करके मां गौरी और शिव जी की पूजा करती हैं. उन्हें सुहाग का सामान अर्पित करती हैं. भगवान को भोग अर्पित किया जाता है और इसके बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है.
महेश नवमी की व्रत कथा
महेश नवमी व्रत कथा के अनुसार राजा खडगलसेन की कोई संतान नहीं थी. संतान प्राप्ति की इच्छा से उन्होंने घोर तपस्या की. इसके बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. उन्होंने अपने पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा. जन्म के समय ऋषियों ने राजा को बताया था कि वे 20 साल की उम्र तक सुजान को उतर दिशा की ओर यात्रा न करने दें. एक दिन 72 सैनिकों के साथ राजकुमार जब शिकार खेलने गए तो वे गलती से उत्तर दिशा की तरफ चले गए. उत्तरी दिशा में ऋषि तपस्या कर रहे थे. राजकुमार के पहुंचने से वहां ऋषि की भंग हो गई, जिससे ​ऋषि क्रोधित हो गए. उन्होंने राजकुमार और उनके सैनिकों को पत्थर बनने का श्राप दे दिया. श्राप के बाद राजकुमार और उनके सैनिक पत्थर के बन गए. जब राजकुमार की पत्नी चंद्रावती के पास श्राप से पति के पत्थर बनने का समाचार पहुंचा तो वो सैनिकों की पत्नियों के साथ जंगल में गईं और ऋषि से माफी मांगी और उनसे पति को श्रापमुक्त करने का उपाय पूछा. तब ऋषि ने कहा कि अगर तुम अपने पति को श्राप मुक्त करना चाहती हो तो महेश यानी भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करो. राजकुमार की पत्नी और सभी सैनिकों की पत्नी ने ऐसा ही किया. इसके बाद ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन राजकुमार श्राप से मुक्त हो गए. कहा जाता है कि इसके बाद राजकुमार ने ​अहिंसा का मार्ग अपना लिया. इसके बाद सुजान कंवर ने वैश्य धर्म अपना लिया और महेश के नाम से महेश्वरी समाज बनाया. इस तरह महेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई और हर साल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महेश और मां गौरी की पूजा की जाने लगीं.
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