- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- शबरी जयंती क्यों मनाते...
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | रामायण में माता शबरी के भगवान राम को जूठे बेर खिलाने की कथा हम सभी जानते हैं। रामायण की कथा का ये सबसे प्रचलित हिस्सा है। भगवान राम जब शबरी के पास पहुंचते हैं तो वो उनके स्वागत और निश्चल भक्ति में इतनी खो जाती हैं कि जूठे बेर भगवान को देते जाती हैं।
शबरी नहीं चाहती हैं कि भगवान को कोई खट्टा बेर मिले और इसलिए वे उसे पहले खुद चखती हैं और फिर भगवान को बढ़ा देती है। माता शबरी नहीं चाहतीं कि भगवान राम को कोई कष्ट हो। ये दृश्य भगवान की भक्ति का अनुपम उदाहरण है। उन्हीं माता शबरी के लिए हर साल शबरी जयंती मनाई जाती है।
शबरी जयंती क्यों मनाते हैं, क्या है महत्व
हिंदी पंचांग के अनुसार शबरी जयंती हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने अपनी अनन्य भक्त माता शबरी के जूठे बेर खाए थे। इसलिए इस दिन को शबरी जयंती मनाई जाती है। इस बार ये 5 मार्च, 2021 को मनाई जा रही है।
इस दिन कई जगहों पर इस दिन श्रीराम और माता शबरी की पूजा-अर्चना की जाती है। रामायण के पाठ का आयोजन किया जाता है और लोग कथा सुनते हैं।
पंचांग के अनुसार इस बार सप्तमी तिथि 4 मार्च 2021 को रात 9.58 बजे शुरू हो चुकी है और इसका समापन 5 मार्च को रात 7.54 बजे होगा।
माता शबरी की कथा, भगवान राम से मुलाकात
रामायण की कथा के अनुसार भगवान राम की वनवास के दौरान माता शबरी से मुलाकात हुई। शबरी का असल नाम श्रमणा था। वो भील समुदाय से थी। उनके पिता भील जाति के मुखिया था। शबरी का विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था। शबरी का हृदय बहुत निर्मल था। शबरी के विवाह के तहत परंपरा के अनुसार पशुओं को बलि के लिए लाया गया।
शबरी इसे देखकर बहुत आहत हुईं और विवाह से ठीक एक दिन पहले घर छोड़कर दंडकारण्य वन में आकर रहने लगीं। कथा के अनुसार यहीं मातंग ऋषि तपस्या किया करते थे। शबरी उनकी सेवा करना चाहती थी, लेकिन उन्हें संकोच था कि वे भील जाति से हैं और इसलिए उन्हें इसका मौका कभी नहीं मिल पाएगा।
ऐसे में माता शबरी ने एक रास्ता निकाला। वे सुबह ऋषियों के उठने से पहले उस मार्ग को साफ कर देती थी जो आश्रम से नदी तक का जाता था। शबरी रास्ते के कांटे चुनलेती और रास्ते में साफ बालू बिछा देती थी।
एक बार की बात है। शबरी को ऐसा करते हुए ऋषि मातंग ने देख लिया और बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद उन्होंने माता शबरी को अपने आश्रम में रहने को कहा। ऋषि मातंग का जब अंत समय करीब आया तो उन्होंने एक दिन शबरी को बुलाकर कहा जल्द ही प्रभु राम इस आश्रम में आएंगे। इसलिए उनकी प्रतीक्षा करे।
शबरी ऋषि की बात मानकर भगवान राम का इंतजार करने लगी। वह रोज रास्तों को साफ करती और मीठे बेर तोड़ कर रख लेती। माता शबरी के ऐसा करते हुए कई साल बीत गए।
आखिरकार वो दिन आ ही गया। एक दिन शबरी को पता चला कि वन में घूम रहे दो सुंदर युवक उसे ढूंढ रहे हैं। शबरी समझ गईं कि ये और कोई नहीं बल्कि उनके प्रभु श्रीराम ही हैं। प्रभु जब आश्रम पहुंचे तो शबरी ने उनके चरण धोए और बैठने के आसन दिया।
इसके बाद वह उन बेर को लेकर आई जिन्हें उन्होंने तोड़ कर रखा था और उसे चक-चखकर भगवान राम को खाने के लिए देने लगीं। भगवान राम ने भी बड़े प्रेम से वे बेर खाए और ये कथा आज रामायण की सबसे प्रचलित हिस्सों में से एक है।