धर्म-अध्यात्म

पोंगल त्योहार मनाया किया जाता है जाने क्यों

Teja
11 Jan 2022 11:22 AM GMT
पोंगल त्योहार मनाया किया जाता है जाने क्यों
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पोंगल दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय त्योहार है, जिसे 14 से 17 जनवरी के बीच सेलिब्रेट किया जाता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | पोंगल दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय त्योहार है, जिसे 14 से 17 जनवरी के बीच सेलिब्रेट किया जाता है. लोहड़ी (Lohri) की तरह इसे भी किसानों द्वारा फसल के पक जाने की खुशी में सेलिब्रेट किया जाता है. दक्षिण भारत के कई हिस्सों में इस त्योहार से जुड़ी एक और प्रथा है. इस प्रथा के मुताबिक लोग घरों से पुराना सामान निकाल कर नया सामान लाते हैं. साथ ही नए-नए कपड़े पहनकर इस त्योहार का जश्न मनाया जाता है. जहां उत्तर भारत में लोहड़ी और मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का महत्व है उसी तरह दक्षिण भारत में पोंगल (Pongal 2022) का एक अलग ही महत्व है. कहा जाता है कि इसे दक्षिण भारत में नए साल के रूप भी सेलिब्रेट किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि ये त्योहार संपन्नता को समर्पित है. कहते हैं कि इस त्योहार का इतिहास 1000 साल से भी पुराना है.

ऐसे मनाया जाता है ये त्योहार
– इस त्योहार को चार दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पहले दिन भेगी पोंगल, दूसरे दिन सूर्य पोंगल, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन कन्या पोंगल के रूप में मनाते हैं. इसी से ही नए साल की शुरुआत भी मानते हैं.
-बता दें कि इसके तीसरे दिन भगवान शिव के प्रिय नंदी की पूजा करने की प्रथा है. इसलिए इस दिन बैलों की पूजा-अर्चना की जाती है. चौथे यानी आखिरी दिन देवियों की पूजा की जाती है. इसमें मां लक्ष्मी और मां काली की पूजा की जाती है.
– इस दिन धान को एकत्रित करके उसकी पूजा की जाती है. कामना की जाती है कि आने वाली फसलें भी अच्छी हों. इस दिन सूर्य देव की पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया जाता है.
-दक्षिण भारत के राज्य केरल, कर्नाटक तमिलनाडु, ओडिशा और आंध्र प्रदेश समेत अन्य राज्यों में इस पर्व को पोंगल के नाम से जाना जाता है. यह त्योहार पोंगल भगवान सूर्य को समर्पित है.
– इस खास मौके पर पोंगल नाम का भोजन बनाया जाता है, जिसमें दूध, चावल, काजू और गुड़ जैसी चीजों की मदद ली जाती है. इन भोजन को नए बर्तन में ही बनाना बहुत शुभ माना जाता है.
– त्योहार पर लोग नए-नए कपड़े तो पहनते ही हैं, साथ ही घरों में रंगोलियां भी बनाई जाती है. साथ ही बैलों और गायों की भी पूजा करना इस त्योहार की प्रथाओं में शामिल है.


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