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फाइल फोटो
जनता से रिस्ता वेबडेसक | हमारे यहां फेस्टिवल सीजन की शुरुआत हो चुकी है. कृष्णाष्टमी, दशहरा आदि पर्व चले गए और अब दिवाली, भैया दूज, छठ आदि बाकी है. इस पूरे त्यौहारी मौसम में लोगों पर पर्व त्योहार की खुमारी छाई रहती है. भारतीय पर्व-त्योहारों में लजीज व्यंजनों का भी बहुत महत्व है. हर पर्व त्योहार के लिए अलग-अलग पकवान बनाने की परंपरा है. भारत के अलग-अलग राज्यों में त्योहार या किसी अतिथि (गेस्ट) के आगमन पर खाने की एक से बढ़कर एक वैरायटी परोसी जाती है. दीवाली को मिठाइयों का त्योहार भी माना जाता है. इस खास मौके पर घर में जलेबियों, गुलाब जामुन, खीर, गाजर का हलवा, काजू की बर्फी और भी ऐसी कई अलग-अलग तरह की मिठाइयां बनती हैं, जिसे देखकर दिल खुश हो जाता है. इसी तरह छठ में पकवानों की विशेष तरह की वैरायटी बनाई जाती है. दिलचस्प बात है कि कुछेक त्योहारों को छोड़कर नॉन-वेज खाने की परंपरा हमारे यहां बिल्कुल नहीं है. इन त्योहारों में नॉन वेज खाने की परंपरा क्यों नहीं है या किन स्थितियों में नॉन-वेज खाने की परंपरा है, इसी विषय पर हमने पंडित कमलेश जोशी से बात की.
नॉन वेज खाने से बढ़ेगी आसुरी प्रवृति
पंडित कमलेश जोशी के अनुसार धनतेरस से लेकर भैया दूज तक मनुष्य के घरों में देवताओं का वास होता है. अगर मनुष्य सही कर्म करता है, तो उनके घरों में प्रभु आते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं. ईश्वर के प्रति आपमें भावना तभी आएगी जब आपका मन शुद्ध रहेगा. लेकिन अगर इस दौरान नॉन वेज का सेवन करते हैं, तो आपका मन शुद्ध नहीं रह पाता. जब आपका मन शुद्ध नहीं होगा तो आपमें आसुरी शक्ति का प्रभाव ज्यादा रहेगा. आसुरी शक्ति के प्रभाव से गलत काम करने की प्रवृति बढ़ेगी और मन शुद्ध नहीं हो पाएगा. जहां आसुरी शक्ति का प्रभाव ज्यादा रहता है, वहां प्रभु का वास नहीं हो सकता है. इसलिए दिवाली के आस-पास मनुष्य को मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए.