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भगवान गणेश को क्यों प्रिय है मोदक और दूर्वा घास, जाने
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप मनाया जाता है। इस बार गणेश चतुर्थी 10 सिंतबर 2021 को है। इस दिन से 10 दिनों तक चलने वाला गणेशोत्सव पर्व भी शुरू हो जाएगा। हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्थी तिथि को दोपहर के समय स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था। भाद्रपद चतुर्थी तिथि में गणेश चतुर्थी पर लोग अपने घरों पर भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित कर विधि-विधान से पूजा आराधना करते हैं। गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए कई चीजों का भोग लगाया जाता है। जिसमें मुख्य रूप से मोदक और दूर्वा धास प्रमुख होती है। आइए जानते हैं आखिरकार भगवान गणेश को मोदक और दूर्वा घास क्यों प्रिय होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ऋषि अत्रि ने गणेशजी को भोजन पर आमंत्रित किया, अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूया ने गणेश जी के लिए भोजन लगाया, गणेश जी भोजन करने लगे, लेकिन उनकी भूख शांत ही नहीं हो रही थी, अनुसूया को चिंता होने लगी कि यदि गणेश जी तृप्त नहीं हो पाए तो क्या होगा। घर आए अतिथि को बिना तृप्त किए नहीं लौटा सकते। तब अनुसूया जी ने सोचा कि गणेश जी को खाने के लिए कुछ मीठा दिया जाए। गणेश जी को तृप्त करने के लिए अनुसूया ने मोदक दिए, गणेश जी जैसे ही मोदक खातें मीठे मोदक उनके मुंह में जाकर घुल जाते। मोदक खाकर गणेश जी का मन और पेट दोनों भर गए। वे बहुत प्रसन्न हुए।
इसी तरह से एक कथा मिलती है कि एक बार माता पार्वती ने भी गणेश जी के सामने लड्डू परोसे जिसे देखकर गणेश जी आनंदित हो गए, कहते हैं कि तभी से गणेश जी को लड्डू बहुत प्रिय हैं जो भी उन्हें लड्डू और मोदक का भोग लगाता है गणेश जी प्रसन्न होकर उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
आइए अब जानते हैं कि भगवान गणेशजी को दूर्वा घास क्यों प्रिय होती हैं।
गणेश जी को 21 दूर्वा का गांठे अर्पित करने से वे बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। कहा जाता है कि एक अगलासुर नाम का एक राक्षस था, उसके प्रकोप से हर जगह त्राहि-त्राहि मची हुई थी। वह ऋषि और मुनियों को जिंदा ही निगल लेता था।तब सभी देवी-देवताओ ने मिलकर गणेश जी से प्रार्थना की, गणेशजी ने अगलासुर को निगल लिया। लेकिन इस कारण उनके पेट में तेज जलन होने लगी। तब कश्यप ऋषि ने उन्हें दूर्वा घास की 21 गांठे बनाकर खाने को दी, दूर्वा के औषधिय गुणों से गणेश जी के पेट की जलन शांत हो गई। तभी से गणेश जी को दूर्वा चढ़ाई जाने लगी।