धर्म-अध्यात्म

जानें भगवान भोलेनाथ को क्यों प्रिय है सावन का महीना

Gulabi
24 July 2021 10:44 AM GMT
जानें भगवान भोलेनाथ को क्यों प्रिय है सावन का महीना
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श्रावण अथवा सावन हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का पांचवा महीना ईस्वी कलेंडर के जुलाई और अगस्त माह में पड़ता है

श्रावण अथवा सावन हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का पांचवा महीना ईस्वी कलेंडर के जुलाई और अगस्त माह में पड़ता है. इस वर्ष श्रावण मास 25 जुलाई 2021 को शुरू होगा और 22 अगस्त 2021 तक रहेगा. इसे वर्षा ऋतु का महीना या 'पावस ऋतु' भी कहा जाता है क्योंकि इस समय काफी वर्षा होती है. इस माह में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें हरियाली तीज, रक्षाबन्धन, नागपंचमी आदि प्रमुख हैं. श्रावण पूर्णिमा को दक्षिण भारत में नारियली पूर्णिमा या अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम, उत्तर भारत में रक्षाबंधन और गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है. त्योहारों की विविधता ही तो भारत की विशिष्टता की पहचान है. 'श्रावण' यानी सावन माह में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्त्व है. इस माह में पड़ने वाले सोमवार 'सावन के सोमवार' कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियां तथा विशेषतौर से कुंवारी युवतियां भगवान शिव के निमित्त व्रत आदि रखती हैं.

महादेव को प्रिय सावन
सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है. "जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया, "जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था. अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया. पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया. जिसके बाद से ही महादेव के लिए सावन का महीना विशेष हो गया.
इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा के अनुसार, मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर भगवान शिव की कृपा प्राप्त की थी. जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे.
भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का एक अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था. मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव प्रत्येक वर्ष सावन माह में ही अपने ससुराल आते हैं. भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यही उत्तम समय होता है.
पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था. समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की. लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया. इसी कारण उनका नाम 'नीलकंठ महादेव' पड़ा. विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया. इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है. यही वजह है कि श्रावण मास में भोलेनाथ को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. 'शिवपुराण' में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं. इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में आराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है.
शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं. इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है. यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है जिसे 'चौमासा' भी कहा जाता है. तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं. इसलिए भगवान शिव सावन के प्रधान देवता बन जाते हैं.
भगवान शिव की पूजा
सावन मास में भगवान शंकर की पूजा उनके परिवार के सदस्यों संग करनी चाहिए. इस माह में भगवान शिव के 'रुद्राभिषेक' का विशेष महत्त्व है. इसलिए इस मास में प्रत्येक दिन 'रुद्राभिषेक' किया जा सकता है. जबकि अन्य माह में शिववास का मुहूर्त देखना पड़ता है. भगवान शिव के रुद्राभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, चीनी, गंगा जल तथा गन्ने के रस आदि से स्नान कराया जाता है. अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, शमीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से भगवान शिवको प्रसन्न करते हैं. अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल को भोग के रूप में भोलेनाथ को चढ़ाया जाता है.
शिवलिंग पर बेलपत्र तथा शमीपत्र चढ़ाने का वर्णन पुराणों में भी किया गया है. बेलपत्र भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है. कहा जाता है कि 'आक' का एक फूल शिवलिंग पर चढ़ाने से सोने के दान के बराबर फल मिलता है. हजार आक के फूलों की अपेक्षा एक कनेर का फूल, हजार कनेर के फूलों को चढ़ाने की अपेक्षा एक बिल्वपत्र या बेलपत्र से दान का पुण्य मिल जाता है. हजार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी होते हैं. हजार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, हजार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता, हजार शमी के पत्तों के बराबर एक नीलकमल, हजार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हजार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है.
बेलपत्र
भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका उन्हें 'बेलपत्र' अर्पित करना है. बेलपत्र के पीछे भी एक पौराणिक कथा बताई जाती है. इस कथा के अनुसार, "भील नाम का एक डाकू था. यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था. एक बार सावन माह में यह डाकू राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया और एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया. एक दिन-रात पूरा बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला. जिस पेड़ पर वह डाकू छिपा था, वह बेल का पेड़ था. रात-दिन पूरा बीतने पर वह परेशान होकर बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा. उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था. जो पत्ते वह डाकू तोडकर नीचे फेंक रहा था, वह अनजाने में शिवलिंग पर ही गिर रहे थे. लगातार बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक डाकू के सामने प्रकट हो गए और डाकू से वरदान मांगने को कहा. उस दिन से बिल्वपत्र का महत्व और बढ़ गया.
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