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धर्म-अध्यात्म
जानें हिंदू शास्त्रों में महिलाओं के लिए नारियल तोड़ना क्यों है वर्जित
Tara Tandi
18 May 2022 5:20 AM GMT
![Know why it is forbidden for women to break coconut in Hindu scriptures Know why it is forbidden for women to break coconut in Hindu scriptures](https://jantaserishta.com/h-upload/2022/05/18/1638134--.gif)
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सनातन धर्म में नारियल को सबसे शुद्ध एवं पवित्र फल माना गया है. मान्यता है कि इस फल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सनातन धर्म में नारियल को सबसे शुद्ध एवं पवित्र फल माना गया है. मान्यता है कि इस फल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है. कुछ पौराणिक ग्रंथों में नारियल को देवी लक्ष्मी का रूप माना गया है. आइये जानें हिंदू आध्यात्म में नारियल से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां.
नारियल का फल हर पूजा-उपासना में सम्पन्नता के लिए प्रयोग किया जाता है. हिंदू धर्म से संबंधित वैदिक या दैवीय कार्य नारियल के बिना अधूरा माना जाता है. अनादि काल से नारियल पूजा-पाठ का अहम हिस्सा रहा है. शास्त्रों में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले नारियल तोड़ने की पुरानी परंपरा है. इसे बहुत शुभ एवं पवित्र फल माना जाता है, इसलिए पूजा-पाठ में मंदिरों में देवी-देवता को नारियल अर्पित किया जाता है. नारियल के बिना कोई भी पूजा-अनुष्ठान पूर्ण फलदायी नहीं माना जाता. कहीं इसकी आहुति दी जाती है, तो कहीं देवी-देवता का प्रतीक मानकर इसे पूजा जाता है. आइए जानते हैं इसके पौराणिक महत्व के बारे में.
नारियल का पौराणिक महत्व
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के निर्माण के पश्चात पृथ्वी पर अवतरित होते समय विष्णुजी अपने साथ देवी लक्ष्मी, नारियल का वृक्ष और कामधेनु को लेकर आए थे. नारियल के पेड़ को कल्पवृक्ष भी कहा जाता है जिसमें त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है, इसी आधार पर नारियल पर बनी तीन आँखों की तुलना शिवजी के त्रिनेत्र से की जाती है. इसलिए नारियल को बहुत शुभ मानते हुए इसका इस्तेमाल पूजा-पाठ में विशेष रूप से किया जाता है. देवी पुराण में नारियल को लक्ष्मी जी का प्रतीक माना गया है. इसलिए इसे श्रीफल कहते हैं.
धार्मिक अनुष्ठानों में नारियल क्यों तोड़ते हैं?
शुभ अथवा मांगलिक कार्यों में नारियल फोड़ने की परंपरा बहुत पुरानी है. इस संदर्भ में प्रचलित कथा के अनुसार एक बार महर्षि विश्वामित्र किसी बात पर इंद्रदेव से रुष्ठ होकर एक और स्वर्ग की रचना करने लगे, लेकिन महर्षि स्वयं इस अतिरिक्त स्वर्ग की रचना से संतुष्ट नहीं थे, तब उन्होंने एक पूरी सृष्टि का निर्माण किया, और मानव रूप में नारियल का निर्माण किया. नारियल पर दो नेत्र एवं एक मुख इसी का प्रतीक माना जाता है. इसके अलावा किसी समय विशेष प्रयोजनों के तहत मानव या पशु बलि प्रथा प्रचलित थी. इसे खत्म कर नारियल तोड़ने की परंपरा विकसित की गई. इसका आशय व्यक्ति ने स्वयं को अपने इष्टदेव के समक्ष समर्पित कर दिया.
महिलाएं नारियल क्यों नहीं तोड़ती हैं?
हिंदू धर्म में महिलाओं को नारियल फोड़ना वर्जित है, फिर वह चाहे पूजा-पाठ में प्रयोग किया हुआ नारियल हो या रसोई घर में किसी व्यंजन में इस्तेमाल किया जाता है. इस संदर्भ में तमाम मान्यताएं प्रचलित हैं. एक सामाजिक मान्यता के अनुसार नारियल फल नहीं एक बीज है, जो वनस्पति के उत्पादन या प्रजनन का आधार होता है. नारियल को प्रजनन क्षमता से जोड़ा गया है. स्त्रियां बीज रूप में ही शिशु को जन्म देती है, इसी वजह से स्त्रियों को बीज रूपी नारियल को नहीं फोड़ना चाहिए. ऐसा करना शास्त्र, वेद एवं पुराणों में अशुभ माना गया है. देवी-देवताओं की पूजा-अनुष्ठान के बाद केवल पुरुष ही नारियल को फोड़ सकते है.
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