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धर्म-अध्यात्म
गुरुनानक जयंती को क्यों कहा जाता है प्रकाश पर्व, जानिए
Tulsi Rao
19 Nov 2021 8:16 AM GMT
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गुरु नानक जी सिख समुदाय के पहले गुरु थे. उन्होंने ही सिख धर्म की नींव रखी थी
गुरु नानक जी सिख समुदाय के पहले गुरु थे. उन्होंने ही सिख धर्म की नींव रखी थी. हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु नानक जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है. गुरु नानक जी को उनके अनुयायी बाबा नानक और नानकशाह के नाम से भी संबोधित करते हैं. आज देशभर में कार्तिक पूर्णिमा के साथ गुरु नानक जयंती भी मनाई जा रही है.
नानक देव ने अपना सारा जीवन मानवता को समर्पित कर दिया था. उनके जन्मदिन को उनके भक्त प्रकाश पर्व के तौर पर मनाते हैं. आज गुरु नानक जयंती के पावन अवसर पर हम आपको बताएंगे कि गुरु नानक जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में क्यों मनाया जाता है, साथ ही नानक देव से जुड़ी अन्य जानकारी.
इसलिए गुरु नानक जयंती को कहा जाता है प्रकाश पर्व
नानक देव ने पूरे जीवन में दूसरों के हित के लिए काम किए. उन्होंने हमेशा समाज में बढ़ रही कुरीतियों और बुराइयों को दूर किया और लोगों के जीवन को सुखद बनाने का काम किया नानक देव ने दूसरों के जीवन को संवारने के लिए अपने पारिवारिक जीवन और सुख की चिंता नहीं की. दूर दूर यात्राएं करते हुए वे बस दूसरे लोगों के जीवन में प्रकाश भरते रहे. इसलिए सिख समुदाय के लोग नानक को भगवान और मसीहा मानते हैं और उनके जन्मदिवस को प्रकाश पर्व के तौर पर मनाते हैं.
सिखों के प्रथम गुरु थे नानक देव
गुरु नानक सिखों के प्रथम गुरु थे. उन्होंने ही सिख समुदाय की नींव रखी थी. नानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी नामक जगह पर हुआ था जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित ननकाना साहिब (Nankana Sahib) में पड़ता है. इस स्थान का नाम नानक देव के नाम पर ही पड़ा था. इस स्थान पर आज भी गुरुद्वारा बना है, जिसे ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है. इस गुरुद्वारे का निर्माण शेर-ए पंजाब नाम से प्रसिद्ध सिख साम्राज्य के राजा महाराजा णजीत सिंह ने कराया था. आज भी तमाम लोग इस गुरुद्वारे में दर्शन के लिए दूर दूर से आते हैं.
अंगददेव को बनाया था अपना उत्तराधिकारी
नानक देव ने अपना पूरा जीवन मानव सेवा में लगा दिया. इस दौरान उन्होंने दूर देशों जैसे अफगानिस्तान, ईरान आदि की भी यात्राएं कीं और लोगों के मन में मानवता की अलख जगाई. 1539 में करतारपुर (जो अब पाकिस्तान में है) की एक धर्मशाला में उन्होंने अपने प्राण त्यागे. लेकिन मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था जो बाद में सिखों के दूसरे गुरु अंगददेव कहलाए.
ऐसे मनाया जाता है नानकदेव का जन्मोत्सव
हर साल नानक देव के जन्मोत्सव को उनके भक्त बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं. सुबह के समय 'वाहे गुरु, वाहे गुरु' जपते हुए प्रभात फेरी निकाली जाती है. इसके बाद गुरुद्वारों में शबद कीर्तन किया जाता है और लोग रुमाला चढ़ाते हैं. शाम के समय लंगर का आयोजन होता है. नानक देव के भक्त उनकी बातों का अनुसरण करते हुए मानव सेवा करते हैं और गुरुवाणी का पाठ करते हैं.
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