धर्म-अध्यात्म

बसंत पंचमी के दिन क्यों की जाती है देवी सरस्वती की पूजा, जाने

10 Feb 2024 8:47 AM GMT
बसंत पंचमी के दिन क्यों की जाती है देवी सरस्वती की पूजा, जाने
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ज्योतिष न्यूज़ : शरद ऋतु की विदाई के साथ माघ शुक्ल पंचमी जहां एक ओर ऋतुराज वसंत के आगमन का सूचक है, वहीं दूसरी ओर संगीत व विद्या की देवी वीणा वादिनी मां सरस्वती के अवतरण का दिन भी है। वसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। मुख्यतः …

ज्योतिष न्यूज़ : शरद ऋतु की विदाई के साथ माघ शुक्ल पंचमी जहां एक ओर ऋतुराज वसंत के आगमन का सूचक है, वहीं दूसरी ओर संगीत व विद्या की देवी वीणा वादिनी मां सरस्वती के अवतरण का दिन भी है। वसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। मुख्यतः विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह-प्रवेश के लिए वसंत पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयकर माना गया है।

वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है, पेड़-पौधों और प्राणियों में नवजीवन का संचार होता है। प्रकृति नख से शिख तक सजी-धजी नज़र आती है। वसंत मानव ह्रदय में कोमल प्रवृत्तियों को जगाकर मन में नवजीवन, नवउत्साह, मस्ती, उमंग एवं आनंद प्रदान कर समस्त सृष्टि को नवयौवन की अनुभूति कराता है।

यह प्रकृति का उत्सव है। वसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव ह्रदय में प्रेम और आकर्षण का संचार किया था। इस दिन कामदेव और रति के पूजन का उद्देश्य दांपत्य जीवन को सुखमय बनाना है, जबकि सरस्वती पूजन का उद्देश्य जीवन में अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न करना है।

देवी सरस्वती के अवतरण की कथा
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीवों खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया हुआ है। भगवान विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कम्पंन होने लगा। इसके बाद एक चतुर्भुजी स्त्री के रूप में अदभुत शक्ति का प्राकट्य हुआ, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थीं। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया , संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया व पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।

सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादिनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि की प्रदाता हैं, संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी कहलाती हैं।

इसलिए की जाती है पूजा
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार वसंत पंचमी के दिन श्री कृष्ण ने मां सरस्वती को वरदान दिया - सुंदरी! प्रत्येक ब्रह्मांड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्या आरम्भ के शुभ अवसर पर बड़े गौरव के साथ तुम्हारी विशाल पूजा होगी। मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलयपर्यन्त प्रत्येक कल्प में मनुष्य, मनुगण, देवता, मोक्षकामी, वसु, योगी, सिद्ध, नाग, गन्धर्व और राक्षस सभी बड़ी भक्ति के साथ तुम्हारी पूजा करेंगे। पूजा के पवित्र अवसर पर विद्वान पुरुषों के द्वारा तुम्हारा सम्यक् प्रकार से स्तुति-पाठ होगा। वे कलश अथवा पुस्तक में तुम्हें आवाहित करेंगे। इस प्रकार कहकर सर्वपूजित भगवान श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम देवी सरस्वती की पूजा की, तत्पश्चात ब्रह्मा, विष्णु, शिव और इंद्र आदि देवताओं ने भगवती सरस्वती की आराधना की। तबसे मां सरस्वती सम्पूर्ण प्राणियों द्वारा सदा पूजित होने लगीं।

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