धर्म-अध्यात्म

जानें भगवान शिव ने गंगा नदी को अपनी जटाओं में क्यों और कैसे बांधा

Kajal Dubey
20 Dec 2021 1:44 AM GMT
जानें भगवान शिव ने गंगा नदी को अपनी जटाओं में क्यों और कैसे बांधा
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हिन्दू पौराणिक कथाओं (Pouranik katha) में गंगा को एक पवित्र और मोक्ष प्रदान करने वाली नदी कहा गया है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिन्दू पौराणिक कथाओं (Pouranik katha) में गंगा को एक पवित्र और मोक्ष प्रदान करने वाली नदी कहा गया है. गंगा नदी (Ganga River) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदियों में से एक है. यह सिर्फ एक जलस्तोत्र नहीं है बल्कि हिन्दू मान्यताओं में गंगा को "गंगा मां" कहा जाता है. यह हिन्दुओं की एक पूज्यनीय नदी है. हजारों सालों से गंगा नदी के किनारे हिन्दू सभ्यताओं का जन्म और विकास हुआ है. गंगा नदी का उद्गम हिमालय (Himalaya) से हुआ है, लेकिन क्या आप जानते है, हिन्दू पुराणों के अनुसार गंगा पहले देव लोक में रहा करती थीं. इसलिए इसे हिन्दू पुराणों में देव नदी भी कहा जाता है. तो आइये जानते हैं कि भगवान शिव ने गंगा नदी को अपनी जटाओं में क्यों और कैसे बांधा और गंगा धरती पर कैसे आईं.

भागीरथ के प्रयास से गंगा धरती पर आईं
हिन्दू कथाओं के अनुसार एक समय एक महान राजा भगीरथ हुआ करते थे. उन्होंने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए स्वर्गलोक से गंगा को पृथ्वी पर लाने की ठानी, लेकिन गंगा देवलोक में रहा करती थीं और देवलोक छोड़कर जाना नहीं चाहती थीं, लेकिन भगीरथ ने उन्हें प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा पृथ्वी पर आने को तैयार हो गईं. लेकिन उन्होंने भगीरथ से कहा कि उनका वेग बहुत तेज है और पृथ्वी उसे सहन नहीं कर पायेगी. उनके पृथ्वी पर आते ही उनके वेग से वह रसाताल में चली जाएंगी. गंगा को पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए ब्रह्मा जी ने राजा भगीरथ से भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने की बात कही. तब राजा भगीरथ ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की. उनकी तपस्या से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए.
गंगा के स्पर्श से मोक्ष की प्राप्ति
अब समय था माता गंगा का पृथ्वी पर अवतरण का. तब भगवान भोलेनाथ ने गंगा के प्रचंड वेग से पृथ्वी को बचाने के लिए अपनी जटाएं खोल कर गंगा की धाराओं को अपनी जटाओं में बांध लिया. तब से भगवान भोलेनाथ का नाम गंगाधर पड़ गया. जटाओं में बांधने के कारण गंगा का वेग कम हो गया और वो पृथ्वी पर राजा भगीरथ के पीछे पीछे चल दीं. तब से माता गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाने लगा. भगीरथ के पीछे-पीछे चलते हुए गंगा वहां पहुंची जहां भगीरथ के पूर्वजों की राख पड़ी हुई थी. गंगा के स्पर्श से भगीरथ के पूर्वज मोक्ष को प्राप्त हुए. आज भी उस जगह पर मेले का आयोजन किया जाता है उसे गंगासागर के नाम से जानते है.(


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