धर्म-अध्यात्म

जानिए स्न्नान करने से कौन से 10 पापों से मिलती है मुक्ति

Tara Tandi
9 Jun 2022 5:39 AM GMT
जानिए स्न्नान करने से कौन से 10 पापों से मिलती है मुक्ति
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ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विष्णुपदी, पुण्यसलिला मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ,अतः यह दिन गंगा दशहरा (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) या लोकभाषा में जेठ का दशहरा के नाम से जाना जाता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विष्णुपदी, पुण्यसलिला मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ,अतः यह दिन गंगा दशहरा (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) या लोकभाषा में जेठ का दशहरा के नाम से जाना जाता है। इस बार दशमी तिथि 9 जून को प्रातः काल 8 बजकर 21 मिनट से प्रारंभ होकर 10 जून को सायंकाल 7 बजकर 25 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के आधार पर गंगा दशहरा 10 जून को मनाया जाएगा। साथ ही इस दिन हस्त नक्षत्र और व्यतिपात योग भी रहेगा, इस योग में स्नान और दान करना अति लाभदायक होता है।

दस तरह के पाप से मिलता है छुटकारा
पुराण कहते हैं कि इस दिन गंगाजल के सेवन या गंगा स्नान करने से अनजाने में हुए पाप और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है एवं दस प्रकार के पाप नष्ट होते हैं।
दैहिक पाप
बिना दी हुई वस्तु को लेना,निषिद्ध हिंसा,परस्त्री संगम-यह तीन प्रकार का दैहिक पाप माना गया है।
वाणी से पाप
कठोर वचन मुंह से निकालना,झूट बोलना,सब ओर चुगली करना एवं वाणी द्वारा मन को दुखाना-ये वाणी से होने वाले चार प्रकार के पाप हैं।
मानसिक पाप
दूसरे के धन को लेने का विचार करना,मन से किसी का बुरा सोचना और असत्य वस्तुओं में आग्रह रखना-ये तीन प्रकार के मानसिक पाप कहे गए हैं। यानी कि दैहिक, वाणी द्वारा एवं मानसिक पाप,ये सभी गंगा दशहरा के दिन पतितपावनी गंगा स्नान से धुल जाते हैं।
ऐसे आई धरती पर मां गंगा
विष्णु पुराण में लिखा है कि गंगा का नाम लेने,सुनने,उसे देखने,उसका जल पीने,स्पर्श करने,उसमें स्नान करने तथा सौ योजन (कोस)से भी गंगा नाम का उच्चारण करने मात्र से मनुष्य के तीन जन्मों तक के पाप नष्ट हो जाते हैं। पदमपुराण की कथा के अनुसार आदिकाल में ब्रह्माजी ने सृष्टि की 'मूलप्रकृति' से कहा-''हे देवी!तुम समस्त लोकों का आदिकारण बनो,मैं तुमसे ही संसार की सृष्टि प्रारंभ करूँगा''। ब्रह्मा जी के कहने पर मूलप्रकृति-गायत्री सरस्वती,लक्ष्मी,उमादेवी,शक्तिबीजा,तपस्विनी और धर्मद्रवा इन सात स्वरूपों में प्रकट हुईं। इनमें से सातवीं 'पराप्रकृति धर्मद्रवा'को सभी धर्मों में प्रतिष्ठित जानकार ब्रह्माजी ने अपने कमण्डलु में धारण कर लिया। राजा बलि के यज्ञ के समय वामन अवतार लिए जब भगवान विष्णु का एक पग आकाश एवं ब्रह्माण्ड को भेदकर ब्रह्मा जी के सामने स्थित हुए,उस समय अपने कमण्डलु के जल से ब्रह्माजी ने श्रीविष्णु के चरण का पूजन किया। चरण धोते समय श्री विष्णु का चरणोदक हेमकूट पर्वत पर गिरा। वहां से भगवान शिव के पास पहुंचकर यह जल गंगा के रूप में उनकी जटाओं में समा गया।
गंगा बहुत काल तक शिव की जटाओं में भ्रमण करती रहीं। तत्पश्चात सूर्यवंशी राजा भगीरथ ने अपने पूर्वज सगर के साठ हज़ार पुत्रों का उद्धार करने हेतु गंगा को धरती पर लेन के लिए शिवजी की घोर तपस्या की। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर गंगा को पृथ्वी पर उतार दिया। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, हस्त नक्षत्र में गंगाजी शिवजी की जटाओं से निकलकर धरती पर आई थी। उस समय गंगाजी तीन धाराओं में प्रकट होकर तीनों लोकों में चली गयीं और संसार में त्रिस्रोता के नाम से विख्यात हुईं। शिव,ब्रह्मा तथा विष्णु-तीनों देवताओं के संयोग से पवित्र होकर गंगा त्रिभुवन को पवन करती हैं।
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