धर्म-अध्यात्म

जानिए कब से शुरू हो रही है कांवड़ यात्रा और इसका महत्व...

Tara Tandi
19 Jun 2022 1:24 PM GMT
जानिए कब से शुरू हो रही है कांवड़ यात्रा और इसका महत्व...
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भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना सावन इस साल 14 जुलाई 2022 से शुरू हो रहा है। इस पूरे माह में देवों के देव महादेव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना सावन इस साल 14 जुलाई 2022 से शुरू हो रहा है। इस पूरे माह में देवों के देव महादेव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। वैसे तो साल भर महादेव की पूजा की जाती है, लेकिन सावन का महीना शिव शम्भू की आराधना के लिए उत्तम माना जाता है। हिंदू धर्म में भगवान शिव शंकर को सभी देवों में सबसे उच्च स्थान प्राप्त है, इसलिए वे देवाधिदेव महादेव कहलाते हैं। वे कालों के भी काल महाकाल हैं। इनकी कृपा से बड़ा से बड़ा संकट भी टल जाता है। मान्यता है कि यदि कोई जातक सावन महीने में प्रत्येक सोमवार को पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखता है, तो उसे भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त होता है और भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। हर साल श्रद्धालु महेश्वर को खुश करने के लिए कांवड़ यात्रा निकालते हैं। आइए जानते हैं कब से शुरू हो रही है कांवड़ यात्रा और इसका महत्व...

कब से शुरू हो रही कावड़ यात्रा ?
हर साल लाखों शिव भक्त भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए कांवड़ यात्रा निकालते हैं। ये यात्रा हर साल सावन माह में निकाली जाती है। 14 जुलाई दिन गुरुवार से सावन माह की शुरुआत हो रही है। इस दिन लाखों श्रद्धालु अपने नजदीक गंगा नदी से जल भरकर प्रसिद्ध शिव मंदिर पहुंचेंगे और महादेव का रुद्राभिषेक करेंगे।
क्या होती है कांवड़ यात्रा?
सावन के पावन महीने में शिव भक्त कांवड़ यात्रा का आयोजन करते हैं, जिसमें लाखों श्रद्धालु भगवान शिव को खुश करने के लिए प्रमुख तीर्थ स्थलों से गंगा जल से भरी कांवड़ को अपने कंधों पर रखकर पैदल लाते हैं। फिर बाद में ये गंगा जल शिव जी को चढ़ाया जाता है। इसी यात्रा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है।
कावड़ यात्रा का महत्व
माना जाता है कि भगवान शिव बहुत ही आसानी से प्रसन्न हो जाने वाले देव हैं। वे केवल भाव के भूखे हैं, यदि कोई श्रद्धा पूर्वक उन्हें केवल एक लोटा जल अर्पित कर दे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए हर साल उनके भक्ति कावड़ यात्रा निकालते हैं।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि पहला कांवड़िया रावण था। वेद कहते हैं कि कांवड़ की परंपरा समुद्र मंथन के समय ही पड़ गई। उस दौरान जब मंथन में विष निकला, तो संसार इससे त्राहि-त्राहि करने लगा।
तब भगवान शिव ने इसे अपने गले में रख लिया, लेकिन इससे शिव के अंदर जो नकारात्मक ऊर्जा ने जगह बनाई, उसको दूर करने का काम रावण ने किया।रावण, भगवान शिव का सच्चा भक्त था। वह कांवर में गंगाजल लेकर आया और उसी जल से उसने शिवलिंग का अभिषेक किया, तब जाकर भगवान शिव को इस विष से मुक्ति मिली।
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