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शनि अमावस्या का महत्व
हिंदू शास्त्रों (Hindu scriptures) में फाल्गुन कृष्णपक्ष की उदया तिथि की अमावस्या के दिन स्नान-दान-श्राद्ध आदि का विशेष महत्व बताया गया है. जब यह तिथि शनिवार के दिन पड़ता है तो इसे शनिश्चरी अमावस्या (Shanishri Amavasya) कहा जाता है. इस दिन पितरों की पूजा के साथ-साथ शनिदेव की भी पूजा की जाती है.
कहते हैं कि शनिश्चरी अमावस्या के दिन भगवान शनिदेव की पूजा और, उनके निमित्त उपाय करने से शनिदेव बहुत प्रसन्न होते हैं. इस वर्ष शनि अमावस्या 13 मार्च को पड़ रहा है.
कहते हैं कि व्यक्ति अपने जीवनकाल में जैसा कर्म करता है, न्याय के देवता शनि उसे वैसा ही फल प्रदान करते हैं. शनिदेव, जिनके गुरु देवाधिदेव भगवान शिव हैं, जब प्रसन्न होते हैं तो उसके सारे कष्ट कट जाते हैं और जीवन खुशियों से भर जाता है, लेकिन कुकर्म करने वाला व्यक्ति उनकी तीक्ष्ण नजरों से बच नहीं सकता. उसे उसके कर्मों की सजा मिलती ही है. अगर जातक शनि की साढ़े साती, अढैया अथवा पितृदोष से ग्रस्त है तो इनसे मुक्ति पाने के लिए शनिश्चरी अमावस्या के पूजा-अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए.
शनि अमावस्या का महत्व
ज्योतिषियों के अनुसार अगर किसी की कुण्डली शनि की साढ़े साती, ढय्या, पितृ-दोष अथवा कालसर्प आदि से प्रभावित है तो शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनि की विशेष पूजा-अनुष्ठान करवाकर इनसे मुक्ति पाई जा सकती है. हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान शनि कर्म फल दाता हैं, वे व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं. शनि देव अच्छे कर्म करने वालों को अच्छे फल और बुरे कर्म करने वालों को बुरे फल प्रदान करते हैं. शनि की दृष्टि से कुछ भी छिपा न नहीं छिप सकता.
ध्यान रहे शनि देव की पूजा-प्रतिष्ठा बड़ी सावधानी से और योग्य विद्वान से ही करवाना चाहिए, तभी यथोचित फलों की प्राप्ति होती है. ज्योतिषियों का कहना है कि विशेष परिस्थितियों एवं मुहूर्त में ही शनि की पूजा-अनुष्ठान इत्यादि कराया जाता है. लेकिन अगर शनिश्चरी अमावस्या के दिन नीचे दिये गये कार्यों को किया जाये तो जातक पर शनि की कृदृष्टि नहीं पड़ती. चूंकि यह दर्श अमावस्या भी है, इसलिए ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत एवं पूजन करने से चंद्र देवता प्रसन्न होते हैं, तथा सौभाग्य एवं समृद्धि का आर्शीवाद देते हैं.
शनिश्चरी अमावस्या के दिन करें ये कार्य
* इस दिन भगवान शिवजी की भी पूजा करनी चाहिए. मान्यता है कि शनि ग्रह से शुभ फल पाने के लिए शिव की उपासना एक सिद्ध उपाय है. शिव के पंचाक्षरी मंत्र का पाठ करने से शनि का प्रकोप शांत होता है, और सभी बाधाएं दूर होती हैं.
* शनि अमावस्या के दिन सूर्यास्त के पश्चात पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल के 7 दीप प्रज्जवलित करें. इसके बाद वृक्ष की जड़ों के पास काले तिल, सरसों का तेल, लोहे की कील अर्पित करते हुए निम्न मंत्र का जाप करें.
'ऊं शं शनैश्चराय नम:'
* अगर किसी की कुंडली में शनि-दोष, शनि की साढ़े साती, अथवा शनि की ढैय्या चल रही है, तो शनिवार के दिन या लोहे की कटोरी में सरसों का तेल भरकर उसे पीपल के वृक्ष के नीचे रखकर उसमें अपना चेहरा देखें, इसके बाद उस दीपक को पेड़ की जड़ के नीचे मिट्टी से दबा दें. ऐसा करने से उपरोक्त दोषों से मुक्ति पाई जा सकती है. शनि देव प्रसन्न होते हैं.
* अकसर शनि दोष के कारण आपके कार्य बनते-बनते रह जाते हैं, सफलता आपके द्वार से ही वापस लौट जाती है, बीमारियां पीछा नहीं छोड़ती, ऐसी स्थिति में एक गमले में शमी का पेड़ लगाकर उसे चारों तरफ काले तिल छिड़क दीजिये और इसके पश्चात उसके सामने सरसों के तेल का दीप प्रज्जवलित करें. ऐसा करते हुए शनि का निम्न मंत्र का 11 बार जाप करें.
ऊँ शं यो देवि रमिष्ट्य आपो भवन्तु पीतये, शं योरभि स्तवन्तु नमः
* शनि की साढे़-साती या ढैय्या से पीड़ितों को शनिश्चरी अमावस्या के दिन प्रातकाल स्नान-ध्यान कर शनि स्रोत का पाठ करना चाहिए. इसके साथ ही शनि यंत्र धारण करें.
* पितृ-दोष से पीड़ित व्यक्ति पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीप प्रज्जवलित कर, कांस्य के एक बर्तन में दूध, गंगाजल, थोड़ा काला तिल लेकर पीपल की सात परिक्रमा करते हुए, ऊं ब्रह्म देवाय नम: का जाप करें. इसके बाद पीपड़ की जड़ पर एक जनेऊ अर्पित करे. प्रसाद में काली या सफेद चीज चढ़ाते हुए प्रार्थना करें कि, -शनिदेव, हे पितृ देव हमसें जाने-अनजाने में कोई भूल हो गई हो तो माफ करिएगा. हमें अपनी कृपा का पात्र बनाएं, हमारे मार्ग में आनेवाली बाधाएं दूर करें.
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