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साल भर की 24 एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं
साल भर की 24 एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं. धार्मिक लिहाज से सभी एकादशी को काफी महत्वपूर्ण माना गया है. हर एकादशी का अलग नाम और महत्व होता है. पापमोचनी एकादशी व्रत चैत्र के महीने में कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है. पापमोचनी एकादशी को पापों से मुक्ति प्रदान करने वाली एकादशी माना गया है. इस बार पापमोचनी एकादशी व्रत 7 अप्रैल को रखा जाएगा. जानिए इससे जुड़ी खास बातें.
पापमोचनी एकादशी व्रत को पाप हरने वाली एकादशी कहा जाता है. धार्मिक मान्यता है कि यदि व्यक्ति पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ ये व्रत रहे और पश्चाताप वाली भावना के साथ भगवान से अपने पापों को समाप्त करने के लिए प्रार्थना करे और भविष्य में कोई गलत कार्य न करने की भावना रखे तो भगवान उसकी कामना को जरूर पूरा करते हैं और उसे पापों से मुक्ति देते हैं. इस दिन तन मन की शुद्धता के साथ गीता का पाठ करना चाहिए और दान पुण्य करना चाहिए.
शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि शुरू : 07 अप्रैल दिन बुधवार
व्रत पारण का समय : 08 अप्रैल को दोपहर 01 बजकर 39 मिनट से शाम 04 बजकर 11 मिनट तक.
हरि वासर का समय : 08 अप्रैल को सुबह 08 बजकर 40 मिनट पर.
व्रत विधि
व्रत वाले दिन सूर्योदय के समय उठकर स्नान के बाद ही व्रत का संकल्प करें. इसके बाद भगवान गणेश का ध्यान करें और उनसे पूजा को सफल बनाने की प्रार्थना करें. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर उन्हें धूप, दीप, चंदन, पुष्प, फल, वस्त्र, भोग और दक्षिणा अर्पित करें. पापमोचनी व्रत कथा पढ़ें फिर आरती करें. दिन भर निराहार रहें.
रात में जागकर भगवान का भजन कीर्तन करें. अगले दिन द्वादशी पर किसी जरूरतमंद को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें. फिर अपना व्रत खोलें.
पापमोचनी व्रत कथा
क बार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि घोर तपस्या में लीन थे. उनकी तपस्या से तमाम देवता भी घबरा गए और तपस्या भंग करने के लिए स्वर्ग की अप्सरा मंजुघोषा को उनके पास भेज दिया. मंजुघोषा नृत्य, गायन और सौंदर्य से मेधावी मुनि का ध्यान भंग कर दिया. इसके बाद मुनि मेधावी उस अप्सरा पर मोहित हो गए और उसी के साथ रहने लगे.
कुछ समय बीत जाने के पश्चचात मंजूघोषा ने वापस स्वर्ग जाने की अनुमति मांगी तो मुनि मेधावी को अपनी तपस्या भंग होने का अहसास हुआ और वो क्रोधित हो गए. उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचिनी बनने का श्राप दिया. मंजुघोषा ने मुनि मेधावी से क्षमा मांगी और श्राप से मुक्ति के लिए उपाय पूछा. तब मेधावी ऋषि ने उसे पापमोचनी एकादशी व्रत रखने की सलाह दी.
इसके बाद जब मेधावी ऋषि अपने पिता के महर्षि च्यवन के पास पहुंचे तो महर्षि च्यवन ने उन्हें भी पापमोचनी एकादशी व्रत रखने के लिए कहा ताकि वे श्राप देने के पाप से मुक्त हो सकें. व्रत रखने के बाद अप्सरा भी श्रापमुक्त होकर अपने रूप में वापस आ गई. वहीं मेधावी ऋषि को भी पाप से मुक्ति मिल गई.
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