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धर्म-अध्यात्म
जानिए कब है मोहिनी एकादशी, शुभ मुहूर्त और महत्व
Apurva Srivastav
17 May 2021 4:33 PM GMT
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वैसे तो कोरोना महामारी के चलते सारे पर्व त्योहारों पर जैसे अंकुश सा लग गया है
वैसे तो कोरोना महामारी के चलते सारे पर्व त्योहारों पर जैसे अंकुश सा लग गया है लेकिन लोग इसके बावजूद अपने घरों पर रहकर ही सारे त्योहारों को मना रहे हैं. आज हम एक और त्योहार के बारे में आपको बताने जा रहे हैं. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को 'मोहिनी एकादशी' मनाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सारे दुखों और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. इसके साथ ही ये भी कहा जाता है कि जो भी इस व्रत को रखता है वो बहुत ही बुद्धिमान और लोकप्रिय हो जाता है.
इस बार ये तिथि 23 मई दिन रविवार को पड़ रही है. इस अत्यंत शुभ दिन पर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. आज हम आपको इस तिथि, पूजा और व्रत के महत्व, मुहूर्त और पारण के बारे में बताने जा रहे हैं-
मोहिनी एकादशी तिथि और शुभ मूहूर्त
इस तिथि का प्रारंभ 22 मई यानी शनिवार के दिन ही सुबह 9 बजकर 15 मिनट पर हो रहा है और इसका समापन 23 मई दिन रविवार को सुबह 6 बजकर 42 मिनट पर होगा. एकादशी की उदया तिथि 23 मई को हो रही है. इसलिए इसका व्रत भी 23 तारीख को ही रखा जाएगा. वैसे तो जगत व्याप्त है कि पूजा और व्रत के दौरान फलाहार रहना पड़ता है तो इस दिन भी आपको फलाहार रहते हुए ही इस व्रत को करना है और भगवान विष्णु की पूजा करनी है.
इस व्रत का पारण समय
अगर आप भी इस दिन व्रत रख रहे हैं तो बता दें कि आप अगले दिन यानी कि 24 मई दिन सोमवार को सुबह 6 बजकर 1 मिनट से सुबह 8 बजकर 39 मिनट के बीच में ही पारण कर सकते हैं. लेकिन ये सदैव ध्यान रखें कि पारण से पूर्व स्नान और भगवान विष्णु का ध्यान करके ही पारण करें. पारण के बाद ब्राह्मणों को दान देना चाहिए जिसके बाद ही भोजन ग्रहण करके इस व्रत को पूरा किया जाना चाहिए.
इस दिन का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ही भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था. पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को राक्षस लेकर भागने लगे, तो भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर उस अमृत कलश की राक्षसों से रक्षा की थी. इस दिन के बारे में ऐसी भी मान्यता है कि माता सीता के वियोग में दुखी भगवान श्रीराम ने भी मोहिनी एकादशी का व्रत रखा था, जिसके प्रभाव से उन्हें उस दुख से मुक्ति मिली थी. वहीं, द्वापर युग में युद्धिष्ठिर ने भी अपने कष्टों से मुक्ति के लिए इस व्रत को किया था.
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