धर्म-अध्यात्म

जानें कब है जया एकादशी व्रत

Ritisha Jaiswal
11 Feb 2022 4:41 PM GMT
जानें कब है जया एकादशी व्रत
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माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी व्रत रखा जाता है। इस साल जया एकादशी व्रत आज यानी 23 फरवरी (मंगलवार) को है

Jaya Ekadashi 2022 : माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी व्रत रखा जाता है। इस साल जया एकादशी व्रत आज यानी 23 फरवरी (मंगलवार) को है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु की जया एकादशी के दिन विधि-विधान से पूजा करने से पिशाच योनि का भय नहीं रहता है। कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र को उनका खोया राज-पाठ मिल गया था और पुत्र भी जीवित हो उठा था। आइए जानते हैं इस दिन क्या करें-

जया एकादशी व्रत नियम-
अजा एकादशी व्रत में दशमी तिथि की रात्रि में मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए। जया एकादशी के दिन न ही चने और न ही चने के आटे से बनी चीजें खानी चाहिए। शहद खाने से भी बचना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा में धूप, फल, फूल, दीप, पंचामृत आदि का प्रयोग करें। इस व्रत में द्वेष भावना या क्रोध को मन में न लाएं। परनिंदा से बचें। इस व्रत में अन्न वर्जित है।
एकादशी के दिन करें ये काम-
-एकादशी व्रत के दिन दान अवश्य करें।
-एकादशी व्रत के दिन अगर संभव हो तो गंगा स्नान करें। ऐसा करना शुभ माना जाता है।
-जल्दी विवाह करवाना चाहते हैं तो एकादशी के दिन केसर, केला या हल्दी का दान करें।
-एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के मन की सभी इच्छाएं पूरी होने के साथ भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी प्रसन्न होते हैं।
-एकादशी का व्रत रखने से धन, मान-सम्मान, अच्छी सेहत और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
एक कथा के अनुसार, इन्द्र की सभा में एक गंधर्व गीत गा रहा था। परन्तु उसका मन अपनी प्रिया को याद कर रहा था। इस कारण से गाते समय उसकी लय बिगड़ गई। इस पर इन्द्र ने क्रोधित होकर गंधर्व और उसकी पत्नी को पिशाच योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।
पिशाच योनी में जन्म लेकर पति पत्नी कष्ट भोग रहे थे। संयोगवश माघ शुक्ल एकादशी के दिन दुःखों से व्याकुल होकर इन दोनों ने कुछ भी नहीं खाया और रात में ठंड की वजह से सो भी नहीं पाये। इस तरह अनजाने में इनसे जया एकादशी का व्रत हो गया।इस व्रत के प्रभाव से दोनों श्राप मुक्त हो गये और पुनः अपने वास्तविक स्वरूप में लौटकर स्वर्ग पहुंच गये। देवराज इन्द्र ने जब गंधर्व को वापस इनके वास्तविक स्वरूप में देखा तो हैरान हुए। गन्धर्व और उनकी पत्नी ने बताया कि उनसे अनजाने में ही जया एकादशी का व्रत हो गया। इस व्रत के पुण्य से ही उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है


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