धर्म-अध्यात्म

जानिए कब से शुरू हो रहा है चातुर्मास

Tara Tandi
18 Jun 2022 4:53 AM GMT
जानिए कब से शुरू हो रहा है चातुर्मास
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साल साल देवशयनी एकादशी 10 जुलाई को है और इस दिन से आने वाले चार महीनों तक सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु पाताल लोक में योग निद्रा में चले जाएंगे

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। साल साल देवशयनी एकादशी 10 जुलाई को है और इस दिन से आने वाले चार महीनों तक सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु पाताल लोक में योग निद्रा में चले जाएंगे। इस चार माह की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इस दौरान मांगलिक कार्य जैसे- विवाह संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध रहेंगे। चातुर्मास आरंभ होने के कारण किसी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। वहीं कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी पर जब भगवान विष्णु योग निद्रा से जागकर पुनः इस लोक में आएंगे और तुलसी जी के साथ उनका विवाह होगा, उसके बाद से सारे मांगलिक कार्य पुनः प्रारंभ होंगे और चातुर्मास खत्म होगा। मान्यता है कि इस दौरान सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथो में होता है। तो चलिए जानते हैं कि इस साल चातुर्मास कब से शुरू हो रहा है, इसका समापन कब होगा साथ ही चातुर्मास के दौरान क्या करें और क्या नहीं....

कब से शुरू है चातुर्मास 2022 ?
हिंदू पंचांग के अनुसार, देवशयनी एकादशी से चातुर्मास आरंभ होता है और इसका समापन देवउठनी या देवोत्थान एकादशी पर होता है। इस साल चातुर्मास का आरंभ 10 जुलाई से हो रहा है। जबकि इसका समापन 04 नवंबर को होगा। इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
चातुर्मास में क्या करें और क्या नहीं ?
चातुर्मास में कोई भी मांगलिक कार्य, जैसे- वैवाहिक कार्य, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, मुंडन, तिलकोत्सव आदि कार्य नहीं किए जाते हैं। मान्यता है कि चातुर्मास में इन कार्यों को करने से अशुभ फल प्राप्त होता है।
मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास में थाली छोड़कर पत्तल में भोजन करना शुभकारी होता है। इसके अलावा चारपाई त्याग कर जमीन पर सोना चाहिए। इससे सूर्यदेव की कृपा बरसती है।
मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास में भगवान विष्णु की पूजा अत्यंत लाभकारी है। इससे मां लक्ष्मी का आगमन होता है। इस माह लोगों को किसी से लड़ाई-झगड़ा करने से बचना चाहिए और झूठ नहीं बोलना चाहिए।
चातुर्मास की अवधि के दौरान, तुलसी पूजा करनी चाहिए। शाम को तुलसी पौधे पर घी दीपक जलाएं। इसके अलावा चातुर्मास के दौरान गुड़, तेल, शहद, मूली, परवल, बैंगल, साग-पात आदि नहीं ग्रहण करना चाहिए।


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