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धर्म-अध्यात्म
जानिए आम जनमानस पर क्या पड़ेगा इसका प्रभाव देवगुरु बृहस्पति शनि की दूसरी राशि में करने वाले हैं प्रवेश,
Teja
19 Nov 2021 11:20 AM GMT
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जानिए आम जनमानस पर क्या पड़ेगा इसका प्रभाव देवगुरु बृहस्पति शनि की दूसरी राशि में करने वाले हैं प्रवेश,
ज्योतिष की दृष्टि से बृहस्पति का गोचरीय परिवर्तन अथवा गति परिवर्तन एक बड़ा परिवर्तन माना जाता है। क्योंकि शनि,राहु एवं केतु के बाद एक राशि मे सर्वाधिक समय तक गोचर करने वाले ग्रह है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देवगुरु बृहस्पति का शनिदेव की दूसरी राशि कुम्भ में गोचरीय परिवर्तन 21 नवंबर 2021 दिन रविवार को दिन में 11:30 बजे होगा। मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वितीया 21 नवम्बर 2021 दिन रविवार को दिन में 11:30 बजे देवगुरु बृहस्पति अपने स्वाभाविक गोचरीय संचरण के क्रम में शनिदेव की पहली राशि मकर से शनिदेव की ही दूसरी राशि कुम्भ में गोचरीय संचरण प्रारंभ करेंगे। देवगुरु एक राशि में लगभग 13 माह तक वक्री एवं मार्गी गति के साथ गोचरीय संचरण करते है। देवगुरु अपनी नीच राशि मकर में 14 सितंबर से 21 नवम्बर तक वक्री एवं मार्गी गति करते हुए 21 नवम्बर 2021 दिन रविवार को अगली राशि कुम्भ में प्रवेश कर गोचरीय संचरण शुरू करेंगे। इस प्रकार अपनी वक्री एवं मार्गी गति के साथ कुम्भ राशि में लगभग 13 माह तक विद्यमान रहकर चराचर जगत को पूर्ण रूप से प्रभावित करेंगे।
ज्योतिष की दृष्टि से बृहस्पति का गोचरीय परिवर्तन अथवा गति परिवर्तन एक बड़ा परिवर्तन माना जाता है। क्योंकि शनि,राहु एवं केतु के बाद एक राशि मे सर्वाधिक समय तक गोचर करने वाले ग्रह है। अतः निश्चित तौर पर गुरु के परिवर्तन का प्रभाव चराचर जगत सहित प्रत्येक प्राणी पर पड़े बिना नही रहेगा। जिस ग्रह का भी परिवर्तन होता है उसके कारक तत्वों में भी बड़ा परिवर्तन होता दिखता है। इस प्रकार बृहस्पति के कारकतत्वों अथवा प्रतिनिधित्व करने वाले तत्व को भी जानना अत्यावश्यक है।
गुरु को किसका कारक माना जाता है?
भाग्य ,खर्च ,विवेक, ज्ञान, ज्योतिषी, अध्यात्म , पुरोहित, परामर्शी, सत्य, विदेश में घर,भविष्य, सहायता, तीर्थयात्रा,नदी, मीठा खाद्य पदार्थ,विश्वविद्यालयी संस्थान, पान,शाप, मंत्र, दाहिना कान, नाक, स्मृति, पदवी, बडा़ भाई, पवित्र स्थान, धामिर्क ग्रन्थ का पठन, पाठन, गुरु, अध्यापक, धन बैंक,शरीर की मांसलता, धार्मिक कार्य ईश्वर के प्रति निष्ठा,दार्शिकता, दान, परोपकार, फलदार वृक्ष, पुत्र, पति, पुरस्कार, जांघ, लिवर, हार्निया इत्यादि का कारक ग्रह है। अर्थात इन क्षेत्रों पर देवगुरु अपना प्रभाव ज्यादा डालते हैं।
धनु एवं मीन इनकी स्वराशि होती है अर्थात धनु एवं मीन, राशि अथवा लग्न के स्वामी ग्रह होते है। चंद्रमा की राशि कर्क में जहाँ ये उच्चत्व को प्राप्त होते है। वही शनि की पहली राशि मकर में नीचत्व को प्राप्त होते है। शनिदेव न्यायाधीश है, न्यायाधीश की राशि कुम्भ के बाद अपनी राशि की तरफ शनि देव बढ़ेंगे ऐसे में अपना प्रभाव सभी व्यवस्थाओं सहित चराचर जगत पर डालेंगे।
पंचांग-पुराण से
स्वतंत्र भारत की कुण्डली कर्क राशि एवं वृष लग्न की है।यद्यपि चंद्र राशि कर्क राशि से देखा जाए तो देवगुरु षष्ठ भाव एवं भाग्य भाव के स्वामी होकर अष्टम भाव में विद्यमान रहकर भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर अपना आधिपत्य स्थापित करेंगे। जैसे धन में वृद्धि, आमजन मानस में सुख की अनुभूति एवं व्यापारिक साझेदारी सहित लाभ में वृद्धि करने वाले होंगे।परंतु प्रगति में अवरोध भी होगा।
ग्रहों के परिवर्तन का प्रभाव लग्न के अनुसार ज्यादा दिखता है। अतः वृष लग्न वालों के लिए अष्टम एवं लाभ भाव के स्वामी होते है। जो दशम भाव मे गोचर करते हुए धन भाव, सुख भाव सहित षष्ट भाव पर दृष्टि पात करेंगे, गुरु की दृष्टि ज्यादा फल दायक होगी इस प्रकार विश्व स्तर पर भारत के पराक्रम, यश,सम्मान में वृद्धि होगी।शेयर बाजार से आम जनमानस को लाभ होगा । मित्र राष्ट्रों के सहयोग प्राप्त होगा। धन भाव एवं सुख भाव पर दृष्टि भारत के बौद्धिक, नए शोध,अन्वेषण तथा व्यापारिक लाभ, इंफ्रास्ट्रक्चर में वृद्धि। सामरिक महत्त्व में वृद्धि में पूर्ण मदद करेगा। न्याय तंत्र मजबूत होगा।
◆ कोरोना या कोरोना जैसी समस्या अपने विकराल रूप से अवश्य कमजोर होता दिखेगा। फिर भी राहु की दृष्टि शनि पर पड़ने की कारण प्राकृतिक आपदा, बाढ़, भूकंप, आग से क्षति , भूस्खलन, चक्रवात किसी भी राष्ट्र राज्य के दक्षिणी क्षेत्रों में हो सकते हैं ।
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