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धर्म-अध्यात्म
जानें क्या था भगवान जगन्नाथ के सोने की कुल्हाड़ी का सच
SANTOSI TANDI
20 Jun 2023 8:29 AM GMT

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सोने की कुल्हाड़ी का सच
ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर अकेला एक ऐसा मंदिर है जहां पर जगन्नाथ जी अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। मान्यताओं के अनुसार, पुरी भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर है और इस जगह पर तीनों बहन-भाई अपनी मौसी के घर घूमने आए थे।
जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी कई ऐसे रहस्य व कहानियां हैं जो कि आज भी लोगों को नहीं पता है। जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए उपयोग होने वाली लकड़ी को सोने की कुल्हाड़ी से काटा जाता है। चलिए हम आपको इस सोने की कुल्हाड़ी का सच बताते हैं।
सोने की कुल्हाड़ी का उपयोग कैसे होता है?
रथ बनाने के लिए जिन लकड़ियों का उपयोग किया जाता है उन्हें सोने की कुल्हाड़ी से काटा जाता है। आपको बता दें कि रथ बनाने के लिए दो माह से भी अधिक समय लग जाता है। अक्षय तृतीया के दिन पर सबसे पहले लकड़ी का चुनाव किया जाता है और फिर मंदिर के पुजारी जंगल जाकर उन पेड़ों की पूजा करते हैं जिनकी लकड़ियां रथ के लिए उपयोग होने वाली होती हैं।
इसके बाद लकड़ी काटने वाले लोग पेड़ों पर सोने की कुल्हाड़ी से एक कट लगाते हैं। कट लगाने से पहले सोने की कुल्हाड़ी को पहले भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा से स्पर्श भी कराया जाता है। माना जाता है कि इससे उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। आपको बता दें कि भगवान जगन्नाथ के भव्य रथ को तैयार करने में नीम के पेड़ और हांसी के पेड़ों की लकड़ियों का उपयोग किया जाता है।
सोने की कुल्हाड़ी का उपयोग क्यों होता है?
माना जाता है कि सोने की कुल्हाड़ी का उपयोग पेड़ काटने के लिए इस किया जाता है ताकि भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपना आशीर्वाद हमेशा बनाए रखें। रथ बनाने वाले लोग एक ही समय भोजन करते हैं, वे मांसाहार भोजन नहीं कर सकते उन्हें केवल सादा भोजन ही करना पड़ता है और ब्रह्मचर्य का पालन करना भी जरूरी होता है। सिर्फ यही नहीं, सूतक लग जाने पर भी कारीगर को रथ निर्माण के काम से हटाना पड़ता है।
इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ और उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के लिए एक-एक रथ बनाए जाते हैं और इस तरह से तीन रथ बनाए जाते हैं। तीनों रथों के निर्माण में लिए लगभग 884 पेड़ों के 12-12 फीट के तने भी लगते हैं और इससे रथ के खंभे बनाए जाते हैं।
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