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- जानिए, क्या था बाली और...
रामायण में वानर राज बाली और सुग्रीव की कथा का वर्णन विस्तार से बताया गया है। साथ ही तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस में वानर बंधुओं का उल्लेख है। सनातन धार्मिक ग्रंथ रामायण में निहित है कि वानर राजा सुग्रीव ने वनवास के दौरान सीताहरण के बाद लंका नरेश रावण संग युद्ध में मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्रीराम की सहायता की थी। इस युद्ध में वानर सेना की मदद से भगवान श्रीराम ने रावण और उनकी सेना को परास्त किया था। जब सीता हरण के बाद भगवान श्रीराम और लक्ष्मण वन में माता सीता की तलाश कर रहे थे। उस वक्त उनकी मुलाकात परम भक्त हनुमान और वानर राजा सुग्रीव से हुई थी। सुग्रीव भी अपने भाई बाली के डर से छुपे रहते थे।
वानर राज बाली को तपस्या भंग करने की वजह से मतङ्ग ऋषि का श्राप मिला था कि अगर वह ऋष्यमूक पर्वत के समीप या पर्वत क्षेत्र में प्रवेश करेगा, तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। इसके लिए बाली ऋष्यमूक पर्वत पर नहीं जाता था। यह जान सुग्रीव पर्वत जा छिपा था। भगवान राम से मिलने पर वानर राजा सुग्रीव ने अपनी आपबीती सुनाई। यह सुन भगवान ने सहायता करने और बाली का वध करने का वादा किया। आइए, बाली और सुग्रीव के युद्ध के कारण की कथा जानते हैं-
युद्ध की कथा
किदवंती है कि एक बार की बात है जब दुंदभी नामक दैत्य ने वानर राजा बाली को युद्ध के लिए ललकारा था। वानर राजा बाली किसी भी ललकार को ठुकराता नहीं था और युद्ध मैदान पर चला आता था। बाली के पराक्रम के आगे दुंदभी टिक नहीं सका और महज कुछ पल में बाली ने दुंदभी को परास्त कर उसका वध कर दिया। इसके बाद दुंदभी के शव को हवा में घुमाकर फेंक दिया। इससे दुंदभी का शव कई टुकड़ों में बंट गया।
इस दौरान दुंदभी के शरीर से रक्त प्रवाहित होकर मतङ्ग ऋषि के आश्रम पर जा गिरती है। इससे क्रोधित होकर मतङ्ग ऋषि को श्राप दे देता है कि वह आश्रम के पास आएगा, तो उसकी मौत हो जाएगी। कालांतर में दुंदभी का भाई मायावी वानर राज बाली को युद्ध के लिए ललकारता है। वानर राज बाली पुन: युद्ध के लिए आता है। बाली कई बार मायावी को समझाता है कि वह लौट जाए। युद्ध करेगा, तो उसकी मौत निश्चित है। हालांकि, मायावी नहीं मानता है। तब बाली मायावी का पीछा करने लगता है।