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धर्म-अध्यात्म
जानें श्रीकृष्ण को विषपान कराने वाली पूतना पूर्व जन्म में क्या थी?
Ritisha Jaiswal
17 Aug 2022 1:45 PM GMT
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भगवान श्रीकृष्ण को विषपान करवाने वाली पूतना राक्षसी की कहानी तो सभी ने सुनी व कृष्ण लीलाओं में देखी होगी
भगवान श्रीकृष्ण को विषपान करवाने वाली पूतना राक्षसी की कहानी तो सभी ने सुनी व कृष्ण लीलाओं में देखी होगी. पूतना एक विशालकाय राक्षसी थी. भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए वह कंस के कहने पर गोकुल गई थी. एक सुंदर महिला का भेष बनाकर उसने यशोदा मैया के घर में प्रवेश किया और कान्हा को खिलाने के बहाने अपने स्तनों से विषपान कराने लगी. पर उल्टे बालरूप भगवान श्रीकृष्ण ने ही स्तनपान करते हुए उसका वध कर उद्धार कर दिया था. ज्योतिषाचार्य रामचंद्र जोशी बताते हैं कि श्रीकृष्ण व पूतना के इस प्रसंग को तो सब जानते हैं, लेकिन शायद ही किसी को पता हो कि पूतना पूर्वजन्म में एक राजकन्या अथवा मुनि की पत्नी थी, जिसे लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं. हम अपने पाठकों को वही दो कथाएं बता रहे हैं.
कथा एक: मुनि की पत्नी होकर दिया था धोखा
आदि पुराण की कथा के अनुसार, प्राचीन काल में सरस्वती नदी के किनारे कक्षीवान नामक एक मुनि कठिन तपस्या कर रहे थे. जिनके आश्रम में कालभीरू नाम के एक तपस्वी अपनी स्त्री व पुत्री चारुमति के साथ आए. कक्षीवान व चारूमति में प्रेम होने पर दोनों का विवाह करवाकर कालभीरू पत्नी सहित वापस लौट गए. जिसके बाद दोनों कक्षीवान व चारूमति शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु की पूजा में लग गए.
पर जब कक्षीवान तीर्थ में चले गए तो एक दुष्ट पुरुष चारुमति को अपनी मीठी बातों में फंसाकर साथ ले गया. जब कक्षीवान तीर्थ से लौटे तो पता लगाकर वह चारुमति के पास पहुंचे. जहां उसने पति के साथ लौटने से मना कर दिया. इस पर क्रोधित हुए मुनि कक्षीवान ने उसे राक्षसी होने का श्राप दे दिया.
कहा कि 'तूने मेरी वंचना करके एक धूर्त के साथ प्रेम किया. अत: उस दुष्ट के द्वारा दूषित होने के कारण तो राक्षस योनि को प्राप्त हो. कालांतर में करुणा सिंधु भगवान श्रीकृष्ण के उद्धार पर ही तेरी राक्षसी योनी छूटेगी. आदि पुराण के अनुसार इस वजह से चारूमति को द्वापर युग में पूतना राक्षसी की योनि प्राप्त हुई.
कथा दो: राजकन्या थी पूतना
दूसरी कथा के अनुसार पूतना पूर्वजन्म में राजा बलि की पुत्री रत्नमाला थी. जब भगवान विष्णु वामन अवतार में राजा बलि से भूमि दान लेने आए तो उनका मनोहारी रूप देखकर रत्नमाला का वात्सल्य प्रेम उमड़ आया. उसने वामन भगवान को पुत्र रूप में प्राप्त करने की कामना की. लेकिन, जब उन्हीं वामन रूप भगवान ने पिता बलि से तीन पग में समस्त भूमि ले ली तो क्रोधित होकर उसने भगवान को मन ही मन भला- बुरा कहना शुरू कर दिया.
कहा, कि यदि ऐसा मेरा पुत्र होता तो उसे मैं विष देकर मार देती. कथा के अनुसार रत्नमाला के इस भाव को जान भगवान विष्णु ने उन्हें तथास्तु कहकर वरदान दे दिया. वही रत्नमाला अगले जन्म में पूतना राक्षसी हुई.
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