धर्म-अध्यात्म

जानिए प्राचीन ग्रंथों में पुनर्जन्म के बारे में क्या क्या लिखा है जिनसे आपको अपने जीवन में होने वाली घटनाओ से ज्ञात हो जाये

Usha dhiwar
25 Jun 2024 5:17 AM GMT
जानिए प्राचीन ग्रंथों में पुनर्जन्म के बारे में क्या क्या लिखा है जिनसे आपको अपने जीवन में होने वाली घटनाओ से ज्ञात हो जाये
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प्राचीन ग्रंथों में पुनर्जन्म के बारे में:- About reincarnation in ancient texts

पुनर्जन्म की प्रक्रिया के विषय में श्रीमद्भगवद्गीता में स्पष्ट जानकारी दी गई है जो अत्यंत लोकप्रिय भी है। कर्मयोग का ज्ञान देते समय भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि, 'सृष्टि के आरंभ में मैंने ये ज्ञान सूर्य को दिया था। आज तुम्हें दे रहा हूँ।'
अर्जुन ने आश्वर्यचकित होकर प्रश्न पूछा कि, 'आपका जन्म तो अभी कुछ साल पूर्व
you were born just a few years ago
हुआ और सूर्य तो कई सालों से है। सृष्टि के आरंभ में आपने सूर्य को ये (कर्मयोग का) ज्ञान कब दिया?' कृष्ण ने कहा कि, 'तेरे और मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं, तुम भूल चुके हो किन्तु मुझे याद है। गीता में कृष्ण-अर्जुन का ये पूरा संवाद निम्नलिखित है:-
“ श्री भगवानुवाच
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्‌। विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्‌ ॥ (१)
भावार्थ : श्री भगवान ने कहा - मैंने इस अविनाशी योग-विधा का उपदेश सृष्टि
I have preached this indestructible method of Yoga to the universe.
के आरम्भ में विवस्वान (सूर्य देव) को दिया था, विवस्वान ने यह उपदेश अपने पुत्र मनुष्यों के जन्म-दाता मनु को दिया और मनु ने यह उपदेश अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु को दिया। (१)
“ एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥ (२)
भावार्थ : हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार गुरु-शिष्य परम्परा से प्राप्त इस विज्ञान सहित ज्ञान को राज-ऋषियों ने बिधि-पूर्वक समझा, किन्तु समय के प्रभाव से वह परम-श्रेष्ठ विज्ञान सहित ज्ञान इस संसार से प्राय: छिन्न-भिन्न होकर नष्ट हो गया। (२)
“ स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्‌ ॥ (३)
भावार्थ : आज मेरे द्वारा वही यह प्राचीन योग (आत्मा का परमात्मा से मिलन का विज्ञान The science of union of the soul with God ) तुझसे कहा जा रहा है क्योंकि तू मेरा भक्त और प्रिय मित्र भी है, अत: तू ही इस उत्तम रहस्य को समझ सकता है। (३)
“ अर्जुन उवाच
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः। कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ॥ (४)
भावार्थ : अर्जुन ने कहा - सूर्य देव का जन्म तो सृष्टि के प्रारम्भ हुआ है और आपका जन्म तो अब हुआ है, तो फ़िर मैं कैसे समूझँ कि सृष्टि के आरम्भ में आपने ही इस योग का उपदेश दिया था? (४)
“ बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप ॥ ५ ॥
अर्थात-श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन Shree Bhagwan said- O Arjun ! मेरे और तेरे अनेक जन्म हो चुके हैं; उन सबको मैं जानता हूँ, किंतु हे परंतप ! तू (उन्हें) नहीं जानता।
इसमें श्रीकृष्ण ने पुनर्जन्म के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है और स्वयं (कृष्ण) को अपने पिछले कई जन्मों की जानकारी होने की बात भी रखी है
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