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जानें महादेव को क्या अप्रिय, सावन में पूजा करने से पहले अवसक ध्यान दे ये बातें
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| महादेव और माता पार्वती को समर्पित श्रावण मास आने वाला है. इस महीने में हर तरफ माहौल मानो शिवमय हो जाता है. सुबह से ही मंदिरों में भक्तों की कतार दिखने लगती है और घंटों की आवाज की गूंज सूनाई देती है. भगवान का हर भक्त उन्हें प्रसन्न करना चाहता है और अपने मन की मुराद पूरी करना चाहता है. 25 जुलाई से सावन का महीना शुरू होने जा रहा है जो 22 अगस्त को समाप्त होगा. ऐसे में महादेव की पूजा करने से पहले ये जान लीजिए कि कौन सी चीज महादेव को पसंद है और कौन सी चीज नापसंद. ताकि आप महादेव को उनकी पसंदीदा चीजों को अर्पित करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें.
1. शास्त्रों में कहा गया है कि शिव भगवान को दूध अति प्रिय है, इसलिए ज्यादातर लोग उनका अभिषेक दूध से करते हैं. इसकी कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है. मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब भोलेनाथ ने विषपान किया तो विष से उनका शरीर जलने लगा था. तब उनकी जलन शांत करने के लिए देवताओं ने उनसे दूध ग्रहण करने का निवेदन किया. दूध पीते ही महादेव के शरीर की जलन समाप्त हो गई. तब से दूध महादेव को अत्यंत प्रिय है और उनका अभिषेक दूध से किया जाता है.
2. लाल व सफेद आकड़े के फूल भगवान शिव की पूजा में विशेष रूप से चढ़ाए जाते हैं. इसे आक का फूल भी कहा जाता है. आक के पुष्प को लेकर मान्यता है कि भगवान शिव को इसे अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं. शिव पूजा में इस पुष्प का इस्तेमाल करने से मोक्ष के द्वार खुलते हैं.
3. कनेर का फूल भी भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. मान्यता है कि सावनभर अगर भगवान शिव की पूजा में इस फूल को चढ़ाया जाए तो भक्त की मनोकामना जरूर पूरी होती है.
4. इसके अलावा शिव जी को धतूरा, बेलपत्र, चंदन, केसर, भांग, इत्र, अक्षत, शक्कर, दही, घी, शहद, गंगाजल, गन्ने का रस आदि चीजें चढ़ाई जा सकती हैं. ये सभी चीजें महादेव को बेहद प्रिय हैं.
ये चीजें कभी न चढ़ाएं
– केतकी और केवड़े का फूल महादेव की पूजा में वर्जित है, इसे कभी भी न चढ़ाएं.
– महादेव की पूजा में शंख वर्जित माना गया है.
– तुलसी का पत्ता भी भगवान शिव को नहीं चढ़ाना चाहिए.
– शिव जी को हमेशा चंदन लगाना चाहिए. रोली या कुमकुम का प्रयोग उनकी पूजा में न करें.
– शिव जी को कभी नारियल या नारियल पानी न चढ़ाएं.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)