- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- जानें, मकर संक्रांति...
14 जनवरी को मकर संक्रांति है। सनातन धर्म में इस तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने शिष्य को सूर्य के उत्तरायण होने के महत्व को गीता में विस्तार से बताया है। ऐसी मान्यता है कि दिन के उजाले और सूर्य के उत्तरायण में जो ऋषि,मुनि और ब्रह्चारी पुरुष प्राण त्यागता है। वह पुनः पृथ्वी लोक पर लौटकर नहीं आता है। आसान शब्दों में कहें तो व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाभारत काल में जब भीष्म पितामह युद्ध में घायल हुए, तो उस समय सूर्य दक्षिणायन था। इसके लिए भीष्म पितामह बाण शैया पर पड़े रहे और जब सूर्य उत्तरायण हुआ, तो भीष्म पितामह ने अपने प्राण का त्याग किया। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था।
साथ ही इस दिन खरमास भी समाप्त होता है। इससे पूर्व जब सूर्य धनु राशि में रहते हैं, तो खरमास लगता है। इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। ज्योतिषों की मानें तो सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने से धनु राशि के स्वामी गुरु का प्रभाव क्षीण हो जाता है। इसके लिए खरमास के दिनों में शुभ कार्य करने की मनाही होती है। जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो मकर संक्रांति मनाई जाती है। सूर्यदेव का एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। सूर्यदेव एक राशि में 30 दिनों तक रहते हैं। वहीं, जब सूर्यदेव पुनः मीन राशि में प्रवेश करेंगे, तो खरमास पड़ेगा। मकर संक्रांति के दिन पूजा, जप, तप और दान का विधान है।
देशभर में मकर संक्रांति का पर्व उत्स्व की तरह मनाया जाता है। सनातन शास्त्र में निहित है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा नदी उत्तर प्रदेश और बिहार होकर बंगाल स्थित गगांसागर में जाकर मिल गई थी। अत: मकर संक्रांति के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र नदी गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके बाद भगवान भास्कर को जल में तिल मिलाकर अर्घ्य देते हैं। इस दिन तिलांजलि दी जाती है। साथ ही भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा उपासना करते हैं। साथ ही मकर संक्रांति के दिन शनिदेव की पूजा भी करनी चाहिए। मकर राशि के स्वामी शनिदेव हैं। अंत में ब्राह्मणों और जरुरतमंदों को दान देते हैं।