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जानिए क्या है हिन्दू मन्दिर की वास्तुकला और इसका इतिहास

Usha dhiwar
25 Jun 2024 6:49 AM GMT
जानिए क्या है हिन्दू मन्दिर की वास्तुकला और इसका इतिहास
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हिन्दू मन्दिर की वास्तुकला और इसका इतिहास:- Hindu temple architecture and its history

अंकोरवाट मंदिर (कम्बोडिया)
भारतीय स्थापत्य में हिन्दू मन्दिर का विशेष स्थान है। हिन्दू मंदिर में अन्दर एक गर्भगृह होता है जिसमें मुख्य देवता की मूर्ति स्थापित होती है। गर्भगृह के ऊपर टॉवर-नुमा रचना होती है जिसे शिखर (या, विमान) कहते हैं। मन्दिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा के लिये स्थान होता है There is a space for circumambulation around the sanctum sanctorum of the temple.
इसके अलावा मंदिर में सभा के लिये कक्ष हो सकता है।
इतिहास
ओड़ीसा से प्राप्त १७वीं शताब्दी के ताड़पत्र पाण्डुलिपि के एक पत्र पर एक हिन्दू मंदिर का वास्तु (आर्किटेक्चर) दर्शाया गया है।
मन्दिर शब्द संस्कृत वाङ्मय में अधिक प्राचीन नहीं है। महाकाव्य और सूत्रग्रन्थों में मंदिर की अपेक्षा देवालय, देवायतन, देवकुल, देवगृह आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। मंदिर का सर्वप्रथम उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। शाखांयन स्त्रोत सूत्र में प्रासाद को दीवारों, छत, तथा खिड़कियों से युक्त कहा गया है। वैदिक युग में प्रकृति देवों की पूजा का विधान था। इसमें दार्शनिक विचारों के साथ रूद्र तथा विष्णु का उल्लेख मिलता है।
ऋग्वेद में रूद्र प्रकृति, वनस्पति, पशुचारण के देवता तथा विष्णु यज्ञ के देवता माने गये हैं। बाद में, उत्तरवर्ती वैदिक साहित्य में विष्णु देवताओं में श्रेष्ठतम माने गए। ( विष्णु परमः तदन्तरेण सर्वा अव्या देवताः।)
भारत की प्राचीन स्थापत्य कला में मंदिरों का विशिष्ट स्थान है Temples have a special place in the ancient architecture of India भारतीय संस्कृति में मंदिर निर्माण के पीछे यह सत्य छुपा था कि ऐसा धर्म स्थापित हो जो जनता को सहजता व व्यवहारिकता से प्राप्त हो सके। इसकी पूर्ति के लिए मंदिर स्थापत्य का प्रार्दुभाव हुआ। इससे पूर्व भारत में बौद्ध एवं जैन धर्म द्वारा गुहा, स्तूपों एवं चैत्यों का निर्माण किया जाने लगा था। कुषाणकाल के बाद गुप्त काल में देवताओं की पूजा के साथ ही देवालयों का निर्माण भी प्रारंभ हुआ।
प्रारंभिक मंदिरों का वास्तु विन्यास बौद्ध बिहारों से प्रभावित था। इनकी छत चपटी तथा इनमें गर्भगृह होता था। मंदिरों में रूप विधान की कल्पना की गई और कलाकारों ने मंदिरों को साकार रूप प्रदान करने के साथ ही देहरूप में स्थापित किया। चौथी सदी में भागवत धर्म के अभ्युदय The rise of Bhagavata religion in the fourth century के पश्चात (इष्टदेव) भगवान की प्रतिमा स्थापित करने की आवश्यकता प्रतीत हुई। अतएव वैष्णव मतानुयायी मंदिर निर्माण की योजना करने लगे।
साँची का दो स्तम्भयुक्त कमरे वाला मंदिर गुप्तमंदिर के प्रथम चरण का माना जाता है। बाद में गुप्त काल में वृहदस्तर पर मंदिरों का निमार्ण किया गया जिनमें वैष्णव तथा शैव दोनों धर्मो के मंदिर हैं। प्रारम्भ में ये मंदिर सादा थे और इनमें स्तंभ अलंकृत नही थे। शिखरों के स्थान पर छत सपाट होती थी तथा गर्भगृह में भगवान की प्रतिमा, ऊँची जगती आदि होते थे। गर्भगृह के समक्ष स्तंभों पर आश्रित एक छोटा अथवा बड़ा बरामदा भी मिलने लगा। यही परम्परा बाद के कालों में प्राप्त होती है।
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