धर्म-अध्यात्म

जानिए वरुथिनी एकादशी का मुहूर्त, मंत्र, व्रत एवं पूजा​ विधि

Kajal Dubey
26 April 2022 4:44 AM GMT
जानिए वरुथिनी एकादशी का मुहूर्त, मंत्र, व्रत एवं पूजा​ विधि
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वरुथिनी एकादशी व्रत रखने और भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने की परंपरा है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज वरुथिनी एकादशी व्रत है. हर वर्ष वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को यह व्रत रखा जाता है. आज वरुथिनी एकादशी व्रत रखने और भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने की परंपरा है. पूजा के दौरान विष्णु सहस्रनाम, वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ और भगवान विष्णु की आरती करना आवश्यक होता है. यह व्रत करने से शारीरिक कष्ट एवं मानसिक दुख दूर होता है और विष्णु कृपा से स्वर्ग की प्राप्ति होती है, जैसा कि यह व्रत करने से राजा मांधाता को पुण्य फल प्राप्त हुआ था. पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) मुहूर्त, मंत्र, व्रत एवं पूजा​ विधि के बारे में.

वरुथिनी एकादशी 2022 पूजा मुहूर्त
वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ: 26 अप्रैल, दिन मंगलवार, 01:37 एएम से
वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का समापन: 27 अप्रैल, दिन बुधवार, 12:47 एएम पर
ब्रह्म योग: 26 अप्रैल को शाम 07:06 बजे तक
त्रिपुष्कर योग: 26 अप्रैल, देर रात 12:47 से अगली सुबह 05:44 बजे तक
दिन का शुभ समय: दिन में 11:53 बजे से दोपहर 12:45 बजे तक
वरुथिनी एकादशी पूजा मंत्र
ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:
व्रत एवं पूजा विधि
सुबह स्नान के बाद व्रत एवं पूजा का संकल्प करते हैं. उसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापना करें और उनकी पूजा करते हैं. पूजा में पंचामृत, पीले फूल, फल, पान, सुपारी, अक्षत्, तुलसी का पत्ता, धूप, दीप, कपूर, चंदन, रोली आदि का उपयोग करते हैं. इन वस्तुओं को अर्पित करते समय ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण करते हैं.
इसके बाद विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करते हैं. इसके बाद घी के दीपक या कपूर से भगवान विष्णु की आरती ओम जय जगदीश हरे…करते हैं. व्रत कथा का पाठ करने से व्रत का पुण्य लाभ पता चलता है. व्रत कथा में राजा मांधाता की कहानी है, जिसमें वे किस प्रकार से कष्ट से मुक्ति प्राप्त करते हैं और विष्णु कृपा से स्वर्ग जाते हैं.
पूजा के बाद शाम को संध्या आरती करते हैं और रात्रि के समय में भगवत जागरण करते हैं. फिर अगले दिन स्नान के बाद पूजा और दान करते हैं. सूर्योदय के पश्चात पारण करके व्रत को पूरा करते हैं.


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